रसायन चिकित्सा का आयुर्वेद में महत्वपूर्ण स्थान है। रसायन का प्रयोग स्वस्थ शरीर में स्वास्थ्य रक्षा के लिये तथा रोगी के शरीर में आरोग्य लाभ की दृष्टि से किया जाता है। चिकित्सा का वास्तविक अर्थ क्या है? चिकित्सा अर्थात् ऐसा प्रयत्न जिससे रोग उत्पन्न न हो या जिस प्रयत्न से उत्पन्न, रोग शांत हो जाये। आयुर्वेद चिकित्सा में इसीलिये ऋतुचर्या का भी विशेष महत्व है। ऋतुओं के अनुसार मनुष्य का आहार-विहार आचार हो तो उस मनुष्य कम से कम या नहीं होती है, परन्तु ऋतुचर्या के हिसाब से आहार विहार संभव नहीं हो पाता तब महत्व अधिक बढ़ जाता है रसायन चिकित्सा का।
रसायन चिकित्सा यानि जो औषधि स्वस्थ व्यक्ति में ओज या प्रशस्त भाव को बढ़ाने वाली होती है वही रसायन है। जिसे प्रकार देवताओं में अमृत का महत्व है उसी प्रकार प्राचीन काल में ऋषियों के बीच रसायन का महत्व था। बहुत संभव है कि वातावरण, समय, प्रदूषण इन सब बातों का प्रभाव औषधि के गुणों पर अवश्य पड़ा होगा। इसलिए आज रसायन द्रव्य बूढ़े को जवान भले ही नहीं बना सकते किन्तु आज भी औषधियां गुणहीन नहीं हुई हैं। यदि रसायन औषधि का प्रयोग किया जाये तो शरीर में कांति, देह व इंद्रियों में उत्तम बल की प्राप्ति, आरोग्य, दीर्व आयु, स्मरण शक्ति आदि की वृध्दि आयु, स्मरण शक्ति आदि की वृध्दि अवश्य होती है।
शरीर में रस, रक्त, मांस या आस्थ, मज्जा, शुक्र सहित सात धातुएं हैं। यदि शरीर में ये रसादि धातुएं उचित रूप में बनी रहे तो शरीर स्वस्थ रहता है। रसायन औषधि निर्माण का उद्देश्य यही है कि उत्तम विधि से धातुओं को प्राप्त करना।
इस प्रकार जब शरीर में उत्तम रस, रक्त आदि धातुओं की स्थिति बनी रहेगी तो न ही जल्दी वृध्दावस्था आयेगी और न ही रोग उत्पन्न हो पायेंगे। अर्थात् रसायन औषधि शरीर की क्वालिटी को बनाये रखता है। उपरोक्त लाभ को ध्यान में रखते हुए शास्त्रोक्त विधि से कुछ रसायन के प्रयोग होते हैं। रसायन प्रयोग से पूर्व पंचकर्म अर्थात् वमन विवेचन आदि द्वारा शरीर शोधन करना अनिवार्य होता है। किन्तु यदि पंचकर्म संभव नहीं हो पाता तो संशोधन औषधि के द्वारा शरीर का शोधन किया जा सकता है।
संशोधन औषधि – हरड़ का चूर्ण, आंवला, गुड़, मीठा वच, वाय विडंग, हरिद पीपर, सौंठ सम मात्रा में इन सभी औषधि का चूर्ण बनाकर रसायन सेवी व्यक्ति को गर्म जल से 10 ग्राम की मात्रा दी जाती है। शरीर के संशोधन के बाद रसायन का प्रयोग किया जाता है।
रसायन के लाभ- रसायन का अद्भुत प्रभाव होता है। यह आयु के लिए हितकर है, आरोग्य को देने वाला है, आयुवर्ध्दक है। निंद्रा, तंद्रा, श्रम, आलस्य, दर्बलता को दूर करता है।
वात, कफ पित को सम करने वाला है। शरीर में स्थिरता उत्पन्न करता है। शिथिल मांसपेशियां सुसंगठित करता है, जठराग्नि को दीप्त करता है। प्रभा वर्ण, स्वर को उत्तम बनाता है।
शरीर में रस, रक्त, मांस या आस्थ, मज्जा, शुक्र सहित सात धातुएं हैं। यदि शरीर में ये रसादि धातुएं उचित रूप में बनी रहे तो शरीर स्वस्थ रहता है। रसायन औषधि निर्माण का उद्देश्य यही है कि उत्तम विधि से धातुओं को प्राप्त करना।
इस प्रकार जब शरीर में उत्तम रस, रक्त आदि धातुओं की स्थिति बनी रहेगी तो न ही जल्दी वृध्दावस्था आयेगी और न ही रोग उत्पन्न हो पायेंगे। अर्थात् रसायन औषधि शरीर की क्वालिटी को बनाये रखता है। उपरोक्त लाभ को ध्यान में रखते हुए शास्त्रोक्त विधि से कुछ रसायन के प्रयोग होते हैं। रसायन प्रयोग से पूर्व पंचकर्म अर्थात् वमन विवेचन आदि द्वारा शरीर शोधन करना अनिवार्य होता है। किन्तु यदि पंचकर्म संभव नहीं हो पाता तो संशोधन औषधि के द्वारा शरीर का शोधन किया जा सकता है।
संशोधन औषधि – हरड़ का चूर्ण, आंवला, गुड़, मीठा वच, वाय विडंग, हरिद पीपर, सौंठ सम मात्रा में इन सभी औषधि का चूर्ण बनाकर रसायन सेवी व्यक्ति को गर्म जल से 10 ग्राम की मात्रा दी जाती है। शरीर के संशोधन के बाद रसायन का प्रयोग किया जाता है।
रसायन के लाभ- रसायन का अद्भुत प्रभाव होता है। यह आयु के लिए हितकर है, आरोग्य को देने वाला है, आयुवर्ध्दक है। निंद्रा, तंद्रा, श्रम, आलस्य, दर्बलता को दूर करता है।
वात, कफ पित को सम करने वाला है। शरीर में स्थिरता उत्पन्न करता है। शिथिल मांसपेशियां सुसंगठित करता है, जठराग्नि को दीप्त करता है। प्रभा वर्ण, स्वर को उत्तम बनाता है।