१९ सितम्बर को उपवास तोड़ते समय मोदी ने कहा की "आम आदमी के मन मे पीड़ा है पर प्रकट करने का अवसर नहीं मिल रहा था और अन्ना ने यह अवसर मुहय्या कर दिया इससे भ्रष्टाचार के खिलाफ आक्रोश फूटा,कश्मीर से कन्याकुमारी तक देश उमड़ पड़ा ,देशवासियों के भीतर आशा की किरण.... |" क्या वे अन्ना के आन्दोलन को राजनातिक रूप से भुनाने को अनशन पर बैठे ! अगर नहीं तो उन्होंने यह क्यों नहीं कहा की अन्ना की टीम ने उनके उपवास को राजनीति करना बताया |
१९ तारीख को मोदी ने जितनी बार ६ करोड़ गुजरती का बखान किया उससे हम भारत की जनसँख्या भलेही भूलजाए गुजरात की नहीं भूल पायेगे |गुजरात को निष्ठां से उन्होंने प्रगति के पथ पर आगे बढाया उन्नति से गुजरात को आगे लेजाके बहुत अच्छा कार्य किया उनकी वजह से गुजरात का विकास हुआ |लकिन जब कोई पूछता है की २००२ दंगा पीड़ित के लिए क्या किया ?क्या दंगो की नैतिक ज़िम्मेदारी ली ?इनका जवाब मोदी जी नहीं देते |कही ये सद्भावना का उपवास जख्मो पर नमक रगड़ने का काम नहीं करदे ?
"उपवास एक प्रतिक के रूप मे किया जा रहा था लोग नीयत और निति को समझे "|फिर ऐसे मे इक इमाम की लाई टोपी क्यों नहीं पहनी गई ? मोदी का कहना की उनकी सरकार अल्पसंख्यक और बहुसंख्यक के लिए नहीं सब के लिए काम करती है |क्या दूसरी सरकारे सब के लिए काम नहीं करती मुख्यमंत्री जी ? खैर सद्भावना का बीड़ा मोदी जी ने तब उठाया है जब गुजरात मे हर मोर्चे पर शांति और सद्भाव कायम है |बीजेपी को गर्व होगा की उनकी झोली मे कम से कम इक राज्य तो ऐसा है जहा मुख्यमंत्री बदलने, मंत्री सूचि स्वीकृति या संसद मे उमीदवार तय करने में मुश्किल नहीं आई |
मोदी जी भलेही जाती विशेष मे काफी लोकप्रिय हो उद्योग जगत मे खासी पैठ रखते हो पर देश के प्रधान पद की दौड़ बहुत मुश्किल है |अमरीका के कहने भर से काम नहीं होता भारत का इतिहास गवाह है की आज तक प्रधानमंत्री पद के दावेदार कोई और हुए है और पद का स्वाद किसी और ने ही चखा है |इस देश मे कभी देवेगौडा और गुजराल प्रधान पद पर नजाने कहा से आकर बैठ जाते है तो कभी मनमोहन सोनिया की कुर्सी छीन लेते है|और क्या साठ साल से द्वितीय श्रेणी में बैठे उस बीजेपी नेता आडवानी का सपना मोदी की महत्वकंषा को तोड़ेगा नहीं ? ऐसे कई सवाल पर हम निरुत्तर हो जाते है |२०१४ में ही इसका सही जवाब मिलेगा तब तक हॉट सीट पर कौन कौन आता है यह तो वक़्त ही बताएगा |