Wednesday, May 18, 2011

खेती का अर्थशास्त्र


हम यह मानते रहे हैं कि जैविक खेती और इसके उत्पाद सीधे खेत और किसानों से हमारी रसोई में आयेंगे परन्तु अब यह सच नहीं है. जैसे-जैसे यह तर्क स्थापित हुआ है कि हमें यानी उपभोक्ता को साफ और रसायनमुक्त भोजन चाहिये; वैसे-वैसे देश और दुनिया में बड़ी और भीमकाय बहुराष्ट्रीय कम्पनियों ने जैविक खेती और जैविक उत्पादों के व्यापार को अपने कब्जे में लेना शुरू कर दिया.
भारत में पारम्परिक रूप से जैविक उत्पाद सामान्यतः सीधे खेतों से लोगों तक पहुंचे हैं. हमारे यहां हाईब्रिड और देशी टमाटर या लोकल लौकी जैसे शब्दों के साथ ये उत्पाद बाजार में आते रहे हैं पर अब बड़ी कम्पनियों ने इस संभावित बाजार पर अपना नियंत्रण जमाना शुरू कर दिया है. तर्क यह दिया जा रहा है कि जितने बड़े पैमाने पर आधुनिक खेती में रसायनों का उपयोग किया जा रहा है; उसके खतरे को देखते हुये यह सवाल महत्वपूर्ण नहीं है कि उसका मालिकाना हक किसके पास है. पर इसके दूसरी तरफ हमें यह कभी नहीं भूलना चाहिये कि आज की सबसे बड़ी जरूरत यह तय करने की है कि अनाज, खाद्यान्न और भोजन के उत्पादन का तंत्र और व्यवस्था पारदर्शी ही होना चाहिये. 

ये कम्पनियाँ बार-बार ऐसे बीज विकसित करती हैं, जिनसे होने वाली पैदावार से अगली बुआई या फसल के लिए उत्पादक बीज नहीं मिल सकते है. मतलब कि हर फसल के समय किसान को एक ख़ास कंपनी के बीज खरीदने पड़ेंगे. उन्होंने ऐसी व्यवस्था भी विकसित कर ली है कि एक ख़ास कंपनी के बीजों पर उसके द्वारा बनाए जाने वाले कीटनाशक और उर्वरक ही प्रभावी होंगे. मतलब साफ़ है कि किसान पूरी तरह से एक कंपनी का बंधुआ होगा. और नयी नीति में सरकार ने इस बन्धुआपन की पूरी तैयारी कर दी है. 

सरकार ईमानदार नहीं है इसीलिए तो उसने देश में कृषि शिक्षा को बढ़ावा नहीं दिया. यही कारण है कि वह देश के किसानों के विज्ञान से ज्यादा कंपनियों के लाभ को ज्यादा महत्वपूर्ण मानती है, इसीलिए तो वह अनाज व्यापार के लिए उगाना चाहती है स्वाबलंबन और खाद्य सुरक्षा के लिए नहीं. सरकार ने भारत में तो कृषि पर रियायत कम कर दी, बिजली, उर्वरक, कीटनाशक महंगे हो गए और किसान बाज़ार में आयातित कपास से मार खा गया. विदर्भ में किसानों ने इसीलिए आत्महत्या की है. इसीलिये तो वह देश में कुपोषण और भुखमरी होने के बावजूद देश का अनाज निर्यात करती है या समुद्र में डुबो देती है. इसलिए तो वह यह जानते हुए कि 10 लाख टन अनाज गोदामों में सड़ रहा है पर देश के के लोगों में नहीं बांटती है. सरकार ईमानदार है.