कल रात भारत माता को शर्मसार किया गया गाँधी जी का अनुसरण करने वालो ने उन्हीके पथ पर चलने वाले को लाठियो से कुचल डाला .देश शर्मसार है विरोध प्रखर है पर मंशा क्या है .बाबा को पुलिस ने आधी रात के बाद उठा लिया और ज़ोर-ज़बरदस्ती के बल पर पंडाल खाली करा दिया. मीडिया वाले चकित हैं कि सरकार ने आखिर ऐसा क्यों किया। आम राय यही है कि यूपीए सरकार का यह कदम कांग्रेस और उसकी सहयोगी पार्टियों के खिलाफ ही जाएगा. क्या यह विनाशकाले विपरीत बुद्धि का परिचायक है? हो सकता है
लेकिन मानने को मन नहीं करता कि जिस कांग्रेस में इतने घाघ भरे पड़े हैं, वे बिना सोचे-समझे ऐसा कदम उठाएंगे जो अपनी ही कब्र खोदने वाला हो बाबा भी बार-बार यह घोषणा कर रहे थे कि वह सरकार गिराने के लिए यह अनशन नहीं कर रहे. उन्होंने यह भी कहा कि अगर सरकार ने उनकी मांगें मानीं तो वह सरकार को भी श्रेय देंगे। लेकिन कहीं कुछ ज़रूर हुआ इस बीच जिसने दोनों पक्षों के बीच हो रही सहमति का पुल तोड़ दिया. सरकार ने वह गोपनीय चिट्ठी जारी कर दी जिसमें बाबा के सहयोगी बालकृष्ण ने वादा किया था कि शाम तक बाबा अनशन तोड़ देंगे. इसके बाद बाबा भी भड़क गए कि सरकार ने उनसे धोखा किया. फिर आधी रात को जो हुआ, वह हम सब जान ही गए हैं.
सरकार शायद यह कहे कि हमने बाबा की सारी वाजिब मांगें मान ली थीं और गैरवाजिब मांगें (जैसे भ्रष्टाचार के लिए फांसी की सज़ा आदि) नहीं मानी जा सकतीं. सवाल पूछा जा सकता है कि क्या 100 रुपए लेने पर किसी पुलिसवाले को मृत्युदंड दे दिया जाएगा?
सारी उम्मीद थी कि सरकार बाबा रामदेव को बहला-फुसला लेगी और रामदेव भी बहल-फुसल जाएंगे. इसमें दोनों पक्षों का फायदा होगा – रामदेव अपने-आप को राष्ट्रीय राजनीति में प्रोजेक्ट भी कर लेंगे और सरकार पर से आया संकट भी टल जाएगा। हुआ, इसके उलट सरकार की किरकिरी हुई और रामदेव और बड़े हीरो बन गए. क्या सरकार को यह मालूम नहीं था कि वह जो कर रही है, उससे रामदेव को ही फायदा होगा?
ज़रा गहराई में जाएंगे तो साफ हो जाएगा कि रामदेव को हीरो बनाने से कांग्रेस को ही फायदा है और नुकसान है बीजेपी को. बीजेपी और आरएसएस आज भले ही बाबा रामदेव का खुला समर्थन कर रहे हों लेकिन अंदर ही अंदर उनको यह डर भी है कि कहीं बाबा की राजनीतिक महत्वाकांक्षा जाग गई तो उनके ही वोट कटेंगे. बाबा महात्मा गांधी नहीं हैं कि नेहरू को सत्ता दिला दी, खुद उससे दूर रहे, न वह जयप्रकाश नारायण हैं जिन्होंने 1977 में जनता पार्टी की सरकार बनवाई थी लेकिन खुद कोई पद नहीं लिया. बाबा रामदेव राजनीति में आएंगे तो ऐक्टिवली आएंगे, कुछ करने और कुछ पाने के लिए आएंगे.
लगता है कि बीजेपी के वोट काटने के लिए ही रामदेव को हीरो बना रहे हैं. यह चाल कितनी कामयाब होगी, अभी से कहना मुश्किल है. सबकुछ रामदेव के अगले कदम पर निर्भर करता है। खेल अभी खत्म नहीं हुआ है, बल्कि शुरू हुआ है। कह सकते हैं कि 'राम से राज तक' नामक मूवी का टाइटल सीन चल रहा है.