Sunday, April 1, 2012

प्रकाश

यह सर्वविदित है की भगवद गीता में श्री कृष्ण ने कर्म को भक्ति के सामान महत्वपूर्ण दर्शाया है | यू तोसभीप्राणीइस क्षणभंगुर और नाशवान संसार में जन्म लेते है जीते है और मृत्यु को प्राप्त होते है |परन्तु उन्ही का जीना और मरना सार्थक है जो देश जाती धर्म के लिए लेश मात्र का भी  योगदान देते है और अपने पीछे ऐसी वास्तु छोड़ जाते है जो मानव कर्त्तव्य को बतलाती हो और उसे ठीक तरह से सँभालने और समझने में सहायता करती हो |सैनिक अपना रक्त देने का प्रण दे केर देश और समाज की रक्षा कर संसार रूपी वृक्ष की जड़े सीच जाते है ,परन्तु कुछ ऐसे भी महापुरुष है जो अपने आदर्श चरित्र के उपहार से देश की नीव को सुद्रढ़ और स्थाही बनाते है |ऋषि मुनियों की पवन धरा पर प्रेरणा की किरने दिव्य मानियो से सदेव अबुझ रहेगी और मानवता का पथप्रशस्त करती रहेगी |

भारतीय मनीषियों के उर्वर मस्तिष्क से जिस कर्म, ज्ञान और भक्तिमय त्रिपथगा का प्रवाह उद्भूत हुआ, उसने दूर-दूर के मानवों के आध्यात्मिक कल्मष को धोकर उन्हेंने पवित्र, नित्य-शुद्ध-बुद्ध और सदा स्वच्छ बनाकर मानवता के विकास में योगदान दिया है। दर्शन द्वारा विषयों को हम संक्षेप में दो वर्गों में रख सकते हैं। लौकिक और अलौकिक अथवा भौतिक और आध्यात्मिक। दर्शन या तो विस्तृत सृष्टि प्रपंच के विषय में सिद्धान्त या आत्मा के विषय में हमसे चर्चा करता है। इस प्रकार दर्शन के विषय जड़ और चेतन दोनों ही हैं।वेदों के मंत्र प्राचीन भारतीयों के संगीतमय लोककाव्य के उत्तम उदाहरण हैं।प्राचीन काल में राजा लोग अपनी राजनीति में उस वक्त के ऋषि-मुनियों से विचार-विमर्ष करते थेइसी लिए वर्तमान समय में इस समस्या के समाधान के लिए किसी महापुरुष के साथ विचार-विमर्ष करना चाहिए जो धर्मराजनीति के मन्तव्यों को जानता होयदि उन्हें जीवित महापुरुष न मिले तो बीते संतों महात्माओं के साहित्य द्वारा समस्या का समाधान करना चाहिए|