प्रतिभावान हैं, आधुनिक हैं, सब चीज़ें जानने की कोशिश करते हैं, सोशल नेटवर्किंग के दौर का प्रतिनिधित्व करते हैं लेकिन अभी भी राजनीति पर बात करने से कतराते हैं.बात कर टका सा जवाब मिला- नो पॉलिटिक्स प्लीज.
कुछ देर बाद एक गुट राज़ी हुआ.बातचीत में राजनीति को लेकर उनकी उलझन सामने आ गई.समय नहीं है. पढ़ाई का दबाव होता है....इत्यादि, इत्यादि. लेकिन ऐसा भी नहीं है कि वे देश-दुनिया से बेख़बर हैं.
"व्यस्तता के बावजूद कुछ समय निकल ही जाता है. अख़बार पढ़ लेते हैं. इंटरनेट पर देख लेते हैं. क्या चल रहा है, कौन सी पार्टी क्या प्रचार कर रही है, किसका क्या एजेंडा है." युवा नेताओं की बात आई तो अखिलेश को राहुल से ऊपर रखा. सर्वेंद्र कहते हैं कि राहुल को अभी ज़मीनी सच्चाई का आभास नहीं है.छात्र उन पार्टियों से नाराज़ हैं, जो लोकतंत्र की बात तो करती हैं, लेकिन उनकी पार्टी में ही लोकतंत्र नहीं है राजनीति में उन लोगों के लिए विकास के अवसर नहीं हैं, जो निचले स्तर पर काम करते हैं. उनकी ये दुविधा कई युवा की दुविधा है, जो राजनीति में प्रगति के कम अवसर को देखते हुए उसमें पड़ना ही नहीं चाहते.
"छात्रों को भी प्रॉक्सी वोटिंग का अधिकार मिलना चाहिए, जो पढ़ाई के कारण अपने-अपने शहरों से दूर हैं. अब कानपुर वो पुराना कानपुर नहीं, जिसे मैनचेस्टर ऑफ़ ईस्ट कहा जाता था. यहाँ उद्योग का काफ़ी नुकसान हुआ है और इसके लिए मैं राजनेताओं को ज़िम्मेदार मानता हूँ अभी काफ़ी लंबा सफ़र तय करना पड़ेगा, उन्नति और प्रगति के लिए."
............आईआईटी कानपुर के छात्र देश चुनाव पर !!!
कुछ देर बाद एक गुट राज़ी हुआ.बातचीत में राजनीति को लेकर उनकी उलझन सामने आ गई.समय नहीं है. पढ़ाई का दबाव होता है....इत्यादि, इत्यादि. लेकिन ऐसा भी नहीं है कि वे देश-दुनिया से बेख़बर हैं.
"व्यस्तता के बावजूद कुछ समय निकल ही जाता है. अख़बार पढ़ लेते हैं. इंटरनेट पर देख लेते हैं. क्या चल रहा है, कौन सी पार्टी क्या प्रचार कर रही है, किसका क्या एजेंडा है." युवा नेताओं की बात आई तो अखिलेश को राहुल से ऊपर रखा. सर्वेंद्र कहते हैं कि राहुल को अभी ज़मीनी सच्चाई का आभास नहीं है.छात्र उन पार्टियों से नाराज़ हैं, जो लोकतंत्र की बात तो करती हैं, लेकिन उनकी पार्टी में ही लोकतंत्र नहीं है राजनीति में उन लोगों के लिए विकास के अवसर नहीं हैं, जो निचले स्तर पर काम करते हैं. उनकी ये दुविधा कई युवा की दुविधा है, जो राजनीति में प्रगति के कम अवसर को देखते हुए उसमें पड़ना ही नहीं चाहते.
"छात्रों को भी प्रॉक्सी वोटिंग का अधिकार मिलना चाहिए, जो पढ़ाई के कारण अपने-अपने शहरों से दूर हैं. अब कानपुर वो पुराना कानपुर नहीं, जिसे मैनचेस्टर ऑफ़ ईस्ट कहा जाता था. यहाँ उद्योग का काफ़ी नुकसान हुआ है और इसके लिए मैं राजनेताओं को ज़िम्मेदार मानता हूँ अभी काफ़ी लंबा सफ़र तय करना पड़ेगा, उन्नति और प्रगति के लिए."
............आईआईटी कानपुर के छात्र देश चुनाव पर !!!