चेहरे पर रोष और झल्लाहट में वो दुकानदार से संभवत काम मांग रहे हैं| उम्र चालीस के करीब होगी लेकिन चेहरे पर उभर आई हड्डियां गरीबी साफ दिखाती हैं| आठवीं पास करने के बाद बिजली मिस्त्री का काम करते थे लेकिन पिछले पांच वर्षों में कई छोटे उद्योग धंधों के बंद होने के कारण उनकी रोज़ी ख़राब हो गई, छोटा आदमी तो मारा गया न |
सड़क, पानी, बिजली से हमको मतलब नहीं. हमारी तो रोज़ी रोटी ही ख़राब कर दी सरकार ने. बहुत मेहनत से काम सीखे बिजली का. ठीक चल रही थी जिंदगी. फिर सब फैक्ट्रियां बंद होने लगीं. हमारा काम ही रुक गया. भूखे मरने की नौबत आ गई.... आंखों की कोर से आंसू निकलते निकलते रुक जाते हैं |
दिक्कत जो है वो बड़े लोगों को है क्योंकि वो काम नहीं करना चाहते हैं, उन्हें मज़दूर चाहिए काम करने के लिए |गरीबों का खून मीठा लगता है इनको, हम तो अपना काम खुद करते हैं |
ज़िंदगी में पांच साल में तो क्या दस साल में कुछ नहीं बदला | कई मज़ूदर तो रिक्शा चला कर भरण पोषण कर रहे हैं |
वोट तो देते ही हैं लेकिन इसका कुछ होता नहीं है. हम तो शौकिया वोट डालने जाते हैं. तफ़रीह के लिए जाते हैं वोट डालने. हमारी ज़िंदगी में कोई बदलाव थोड़े न होगा ......उनके चेहरे पर मेहनत का पसीना झलकता है और आत्मविश्वास दिखाई पड़ता है |