Saturday, November 26, 2011

रिटेल बाज़ार में विदेशी निवेश

सुना है किसी बड़े कंपनी के मालिक ने हिंदुस्तान में दुनिया का सबसे महंगा घर बनवाया है. आज़ादी से पहले बुनकरों का काम अंग्रेज़ी सरकार ने छीन कर उन्हें मिल मज़दूर बना दिया था, आज़ादी के बाद भी ये सब कुछ रुका नहीं है. टेलर, सुनार सभी अब अपनी दुकान बंदकर मज़दूर बन गए हैं. ये सेल्फ इंपलॉयमेंट हटा कर इन्हें नौकर बना रहे हैं.सवाल यह नहीं है कि विदेशी खुदरा व्यापारियों के हमारे देश में आने के बाद हमारे दुकानदार बर्बाद हो जाऐगें। सवाल ये है कि इस देश का क्या कोई अपना ढांचा रहेगा.


आम उपभोक्ता को शुरूआत मे वॉलमार्ट का आगमन अच्छा लगेगा परंतु लंबे समय की व्यापारिक रणनीति बनाने वाली कंपनी से ग्राहकों को लंबे समय मे नुकसान होगा. खुदरा बाजार मे प्रत्यक्ष विदेशी मुद्रा निवेश का देश को कुछ अधिक लाभ नही होगा.विदेशी कंपनियों के लिए भारत के दरवाज़े खोलने का मतलब होगा हमारे ग़रीब किसानों की दुर्दशा को और बढ़ाना. देश में रोज़ किसान मर रहे हैं और सरकार ने उनकी ओर से आंखें मूंद रखी हैं, और उस पर विदेशी कंपनियों को यहां बुलाकर जले पर नमक छिड़क रही हैं. सरकार को विदेशी मुद्रा के फेर में ना पड़ते हुए हमारी पारंपरिक खेती को बढ़ावा देना चाहिए जिससे किसानों की हालत सुधरे.


भारत जैसे उभरते बाज़ार पर आज हर किसी की नज़र है. भारतीय रिटेल बाज़ार में विदशी निवेश के दूरगामी दुष्परिणाम होंगे. इससे छोटे दुकानदारों का अस्तित्व ही खतरे में पड़ जायेगा. इसमें प्रतिस्पर्धा को बढ़ावा देने का सवाल ही पैदा नहीं होता क्योंकि प्रतिस्पर्धा तो बराबर वालों से होती है. आज ऐसे ही भारतीय बाजार में विदेशी पकड़ काफी मजबूत है, ऐसे में सरकार को चाहिए था की वह छोटे व्यापारियों को बढ़ावा दे.


जब देश की अर्थव्यवस्था को विदेशी निवेश के बल पर ही चलाना है तो कुछ भी करना ठीक है! देश की जनता केवल वोट देने के लिए है और वह वोट तो देगी ही.जिसे भी वोट देगी,वही करेगा सोचने की बात यह है की पश्चिमी पूंजीवादी अर्थव्यवस्था क्या पश्चिम में सफल रही है? आज बैंको, बड़े कॉरपोरेट कंपनियों और वॉल स्ट्रीट के खिलाफ दुनियाभर में इतने प्रदर्शन क्यों हो रहे हैं?