एशिया में मीठे पानी की सबसे बड़ी मानव निर्मित झील जयसमंद से सटी पहाड़ी पर स्थित ऎतिहासिक हवामहल की ऎसी उपेक्षा हो रही है कि अव्वल तो वहां अब कोई जाता नहीं और गलती से चला भी जाए तो उसे चमगादड़ और उनके मल-मूत्र की दुर्गन्ध के अलावा कुछ नहीं मिलता। यही हाल रूठी रानी के महल का है।
जिला मुख्यालय से करीब 52 किलोमीटर दूर स्थित जयसमंद की पाल के किनारे हवा महल को कुछ वर्षोü पूर्व भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण ने अपने अधीन लिया था, अपने स्वामित्व का पत्थर भी लगवा दिया, लेकिन इसका जिम्मा वन विभाग संभाल रहा है।
महल की चाबी वन विभाग के पास है और टिकट भी उसके ही कर्मचारी दे रहे हैं। बताया गया कि पुरातत्व विभाग सर्वेक्षण को इसका चार्ज नहीं मिला है। ऎसे में उसका स्टाफ भी नहीं लगा है। इससे पहले हालांकि पर्यटकों को हवा महल की ओर आकर्षित करने के लिए इस पर रोशनी भी की जाती थी, लेकिन अब तो सूरज ढलने के बाद महल अंधेरे में खो जाता है।
सारसम्भाल भले न हो, लेकिन पुरातत्व विभाग ने दर्शकों के लिए शुल्क जरूर लगा रखा है। शुल्क देकर भी पर्यटक आसानी से महल तक नहीं पहुंच सकते। वहां जाने के लिए न सीढियां हैं और न ही पक्की रपट। उनको करीब डेढ़ किलोमीटर लम्बे पहाड़ी रास्ते पर चढ़ाई करते हुए महल तक पहुंचना पड़ता है।
महल पर लगे ताले की चॉबी झील की पाल पर स्थित वन विभाग कार्यालय के कर्मियों के पास रहती है। वे टिकट काट पर्यटकों को अपनी जोखिम पर यात्रा करने का रास्ता दिखा देते हैं। महल के आस पास पेयजल की भी व्यवस्था नहीं है।
महल के रोशनदान, जालियां तथा गोखड़ों में लगी खिड़कियों के पल्ले व कांच टूट जाने से अब तो महल के भूतल से तीसरी मंजिल तक प्रत्येक कक्ष, चौक व गलियारे में असंख्य चमगादड़ें नजर आती हैं।
धन के लालच में कुछ लोगों ने हवा महल की दीवारों और फर्श के साथ कमरों के कोनों तक खोद दी हैं। दीवारों पर नाम व अश्लील चित्र उकेर डाले हैं। झील देखने पहुंचने वाले पर्यटकों को हवामहल का इतिहास बताने वाला भी कोई नहीं मिलता। ऎसा ही हाल करीब ढाई किलोमीटर दूर पहाड़ी पर स्थित रूठी रानी महल का भी है