वह सर से पाँव तक मस्त मौला थे | मस्त -जो पुराने कृत्यों का हिसाब नहीं रखते ,वर्तमान कर्मो को सर्वस्व नहीं समझते और भविष्य मे सब कुछ झाड़ फटकार कर निकल जाते है |जो दूकानदार किये कराय का लेखा जोखा दुरुस्त रखता है वह मस्त नहीं हो सकता |जो अतीत का चिटठा खोले रहता है वह भविष्य का क्रांतदर्शी नहीं बन सकता |
हमन है इश्क मस्ताना ,हमन को होश्यारी क्या
रहे आज़ाद या जग से ,हमन दुनिया से यारी क्या
जो बिछुड़े है पियारे से ,भटकते दर बदर फिरते
हमारा यार है हममे ,हमन को इंतजारी क्या
खलक सब नाम अपने को ,बहुत कर सर पटकता है
हमन गुरुनाम सच्चा है ,हमन दुनिया से यारी क्या
न पल बिछुड़े पिया हमसे ,न हम बिछुड़े पियारे से
उन्ही से नेह लगी है ,हमन को बेकरारी क्या
कबीरा इश्क का माता ,दुई को दूर कर दिल से
जो चलना राह नाज़ुक है ,हमन सर बोझ भारी क्यों ||
कबीर यहाँ कहते है की जो इश्क का मतवाला है वह दुनिया के माप जोख से अपनी सफलता का हिसाब नहीं करता | कबीर जैसे फक्कड़ को दुनिया की होश्यारी से क्या वास्ता ? वह प्रेम के मतवाले थे मगर अपनेको उन दीवानों में नहीं गिनते थे जो माशूक के लिए सर पर कफ़न बांधे फिरते ,जो बेकरारी की तड़पन में इश्क का चरम फल पाने का भान करते है ,क्योकि बेकरारी उस वियोग में होती है जिसमे प्रिय दूर हो - उसे पाना कठिन हो | पर जहा प्यारे से एक क्षण के लिए भी बिछोह नहीं ,वहा तदपन कैसी ?जो गगरी भारी है उसमे छलकन कहा ?जहा द्वेष भाव मिट गया हो उस अजीब मस्ती में बैचनी कहा ?
इसीलिए फक्कड़राम किसी के धोखे में आने वाले नहीं थे | दिल जम गया तो ठीक है और नहीं जमा तो राम राम कर के आगे चल दिए | योग प्रक्रिया को उन्होंने डट कर अनुभव किया ,पर जची नहीं | उन नक्टो के समान चुप्पी साधना उन्हें मालूम न था जिन्होंने इस आशा पर नाक कटा ली थी की इस बाधा के दूर होते ही स्वर्ग दिखाई देने लगता है | उन्हें यह परवाह न थी की लोग उनकी असफलता पर क्या क्या टिपण्णी करंगे |कबीर ने बिना लग लपेट के,बिना झिजक के एलान किया :
आसमान का आसरा छोड़ प्यारे ,
उलटी देख घट अपना जी |
तुम आपमें आप तहकीक करो ,
तुम छोड़ो मन की कल्पना जी |