जब वे मारवाड़ की ओर चले तो मार्ग में पड़े आऊवा गाँव के जागीरदार गोपालदास चांपावत ने इस तरह सामूहिक पलायन कर रहे चारणों को देखकर पूछा कि ‘क्या बात हुई? इस प्रकार कहाँ जाने को निकले हैं?’ प्रत्युत्तर में चारणों ने पूरी घटना सुनकर कहा कि ‘हमारी इच्छा तो पलायन से पहले धरना देने की थी पर धरने की रक्षा करने वाला पूरे मारवाड़ में हमें कोई नहीं मिला.’ इस पर गोपालदास चांपावत ने कहा, ‘यदि यह बात है तो मैं तैयार हूँ. आप मेरे गाँव में धरना दीजिये. अपने आठ पुत्रों सहित मैं अपने प्राणों की बाज़ी लगाकर भी आपके धरने की रक्षा करूंगा.’
ऐसा आश्वासन पाने के बाद चारण ने आऊवा गाँव में सूकड़ी नदी के तट पर बने काजलेश्वर महादेव के मन्दिर के आगे की जगह धरने के लिए चुनी. चैत्र शुक्ला त्रयोदशी से पूर्णिमा तक दो दिन उन्होंने निराहार रह कर धरना दिया पर तीसरे रोज़ प्रातः काल से उन्होंने प्राणों का उत्सर्ग करने हेतु अपनी अपनी कटारियों से ‘तागा’ अथवा ‘धागा’ करना आरम्भ किया. ‘धागा’ करते समय वे अपनी कटारी के वार अपनी दोनों बगलों में करते, वहीं ‘तागा’ करते समय वे अपनी कटारी से अपने पाँव के अंगूठे के प्रथम संधिस्थल पर प्रहार करते. उसके बाद क्रमशः अपनी देह के दूसरे संधिस्थलों को काटते चले जाते जब तक कि गले में प्रहार करने से उनकी जान नहीं निकल जाए. इसी प्रकार ‘तेलिया’ करने को वे अपने कपडों पर घी डालकर आग लगा लेते. प्राणोत्सर्ग को उद्यत चारण के धरने की ख़बर जब जोधपुर पहुँची तो अपयश से डर कर राजा ने अपने विश्वासपात्र चारण अखा बारहठ को आऊवा धरना सुलझाने भेजा. अखा बारहठ के साथ राजा का नगारची गोविन्द भी आऊवा आया.
दोनों के आऊवा पहुँचने पर अखा बारहठ को धरणार्थियों को समझाने की ज़रूरत ही नहीं पडी क्योंकि धरणार्थियों ने उससे पूछा, ‘आप किसकी तरफ़ हैं? राजा के साथ हैं कि हमारे साथ? आपका कर्तव्य तो हमारा साथ देना होना चाहिए. नहीं?’ ऐसे सवालों के प्रत्युत्तर में अखा बारहठ ने स्वयं को धरने में सम्मिलित करना उचित समझा. …..यही हाल गोविन्द नगारची का रहा. उसे धरणार्थियों ने यह काम सौंपा कि वह ऊंचे मचान पर बैठ कर सूर्य की प्रथम किरण के फूटने की सूचनानगाड़ा बजा कर देगा, जिससे वे अपना तागा आरम्भ करेंगे. गोविन्द सभी के आग्रह से मचान पर चढ़ तो गया पर यह सोचकर कि मेरे इस प्रकार सूचना करते ही इतने लोग प्राण देंगे. मैं बड़े पाप का भागी बनूँगा. लिहाज़ा उसने नगाड़ा बजाने की जगह स्वयं कटारी से घाव खाया ओर अपनी इहलीला समाप्त की.
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bhai sahab yeh kya blog hua yaarr,,,,, yaar tu phir apne mission se hat raha hai,,
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