कल, आज और कल .........सब का अपना अपना महत्व है . हो सकता है आज लोगो को लगे की हमारे पुरखे हमारे लिए कुछ कम कर के गए है या थोडा और करते तो अच्छा होता परन्तु वे लोग उन परिस्थितियो को नहीं जानते जिनमे बुजुर्गो ने इतना कुछ किया कभी हमने यह विश्लेषण करने की कोशिश की है की आज से पचास साल बाद जब हमारी सन्तेने हमारे बारे में बात करेगी तब तक हो सकता है उनकी जीवन की प्रथमिकताये वह ना रहे जो आज हमारी है अतः वे भी हमारे इतना करने के बाद भी हमें कोसे .
जीवन चक्र का यही नीयम है जिसे श्री कृष्ण ने अर्जुन को युद्ध के वक्त अपने श्रीमुख से बताया की 'हे अर्जुन कर्म कर फल के बारे में मत सोच 'आज के संधर्भ में यह इक अहेम पंक्ति है .परन्तु इसका भी अभिप्राय हर युग में बदल जायेगा और यह पंक्ति हर युग में इक अलग संधर्भ में देखि जायगी .
परिस्थितिया बदल गई परन्तु जीवन के मूल नियम नहीं आज बी मनुष्य प्रकृति पर अपना राज चलाना चाहता है और कल भी मगर आपसी कलह एव विवादों से ग्रसित मनु की यह संतान क्या कभी प्रकृति के समक्ष हत्यार डाल कर प्रेम एवं भाईचारे से जीवन व्यतीत कर पाएंगी .क्या वासुदेव कुटुम्बकम की कल्पना को साकार कर पायंगे
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