मित्रों नमस्कार ,कल मेरा इक मिलनेवाला दस दिनों की बंकोक पटाया देशो की यात्रा से सकुशल लौट आया सकुशल इस लिए कह रहा हूँ क्यों की आजकल दिल्ली मुंबई यात्रा में ही रेल में आग लग जाती है तोह कभी किसी को फैक दिया जाता है |असामाजिक ताकतों की दबंगता बढ़ रही है ,खैर मेरा विषय यात्रा से सम्बन्धहित है |
तो कल जब मै वहा पंहुचा तो उसने बताया की उन देशो मै काफी पैसा ,चकाचौंध है .....
जब वो हवाईजहाज से उतरा तो उसे कई हिन्दुस्तानी टेक्सीवाले मिले उनमेसे इक उन्होंने कर लिया | बातो बातो में
"पता चला वो उदैपुर के पास राजसमन्द का है फिर तो क्या बात वो ड्राईवर कई बाते पूछने लगा बोला "चुनाव का क्या नतीजा निकला जब मै लौटा तब विधानसभा चुनाव हो रहे थे, विदेश मै मेवाड़ी भाषा में बात करते हुए बोला 'फौर लेन सड़क रो काम कटा तक पुगियो ",अबार फेतःसागर में कत्रोक पानी है " आदि .
अब तोह अनजान देश में मिलने वाला जाननेवाला था हमें भी |
रात को घुमने के बाद व्हो होटल ले गया व् कल रात खाना साथ उसके घर खाने की दावत दे कर चला गया |दूसरेदिन समयसे पहले ही वो ड्राईवर आगया हमने बाते की व् घूम फिर कर उसके घर पहुचे वहा उसने दाल बाटी बनाई व् खूब घी ड़ाल कर मेरे आगे परोस दी " मेरे मित्र ने चाय पीते हुए आगे सुनाया |
"जब वो परदेस में रहने वाला ड्राईवर खाना खाने बैठा तो बटियो को देख कर अनायास ही उसकी आखो से आसू टपकने लगे" |बोला "गाव में हर हफ्ते दल बाटी बनती थी" और सुबकने लगा"|
क्या आज हमारे देश ने इतने भी तरक्की नहीं की जो लोगो को दो जून रोटी के लिए विदेश का रुख करना पद्रह है | मुझे उस यात्राव्रत्रांत ने सोचेने पर मजबूर कर दिया |
मित्र की यह यात्रा वृतांत सुन कर मुझे याद आया कैसे दिल्ली प्रवास के दौरान मुझे घर की याद आने पर राजस्थान की बस में बैठ कर जी हल्का करता था | क्या हम मेवाड़ी लोग अपने घर से इतने करीब है |
जब वो हवाईजहाज से उतरा तो उसे कई हिन्दुस्तानी टेक्सीवाले मिले उनमेसे इक उन्होंने कर लिया | बातो बातो में
"पता चला वो उदैपुर के पास राजसमन्द का है फिर तो क्या बात वो ड्राईवर कई बाते पूछने लगा बोला "चुनाव का क्या नतीजा निकला जब मै लौटा तब विधानसभा चुनाव हो रहे थे, विदेश मै मेवाड़ी भाषा में बात करते हुए बोला 'फौर लेन सड़क रो काम कटा तक पुगियो ",अबार फेतःसागर में कत्रोक पानी है " आदि .
अब तोह अनजान देश में मिलने वाला जाननेवाला था हमें भी |
रात को घुमने के बाद व्हो होटल ले गया व् कल रात खाना साथ उसके घर खाने की दावत दे कर चला गया |दूसरेदिन समयसे पहले ही वो ड्राईवर आगया हमने बाते की व् घूम फिर कर उसके घर पहुचे वहा उसने दाल बाटी बनाई व् खूब घी ड़ाल कर मेरे आगे परोस दी " मेरे मित्र ने चाय पीते हुए आगे सुनाया |
"जब वो परदेस में रहने वाला ड्राईवर खाना खाने बैठा तो बटियो को देख कर अनायास ही उसकी आखो से आसू टपकने लगे" |बोला "गाव में हर हफ्ते दल बाटी बनती थी" और सुबकने लगा"|
क्या आज हमारे देश ने इतने भी तरक्की नहीं की जो लोगो को दो जून रोटी के लिए विदेश का रुख करना पद्रह है | मुझे उस यात्राव्रत्रांत ने सोचेने पर मजबूर कर दिया |
मित्र की यह यात्रा वृतांत सुन कर मुझे याद आया कैसे दिल्ली प्रवास के दौरान मुझे घर की याद आने पर राजस्थान की बस में बैठ कर जी हल्का करता था | क्या हम मेवाड़ी लोग अपने घर से इतने करीब है |
gr8 yar.....bt u never told ki delhi jake teri aisi halat ho gayi thi
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