Tuesday, January 31, 2012

Food Safety :Storage of non veg

A bit of knowledge on food safety :

 When it comes to appliances that keep our foods safe, the refrigerator may be the most important because it slows down the growth of bacteria that cause food poisoning. At temperatures between 40 and 140 °F, bacteria grows most rapidly. That’s why we call this temperature range “the Danger Zone.”
A refrigerator set to 40  °F or below will protect most foods – but not forever. The cool temperatures slow down bacterial growth but they don’t stop the growth completely. So, it’s important to use food in a timely fashion to help maintain freshness and quality. Over time, even chilled foods will spoil.
Raw SteakHere are some basic guidelines for storing meat in the refrigerator.
  • Raw ground meats, all poultry, seafood, and variety meats: Refrigerate 1 to 2 days.
  • Raw roasts, steaks, and chops (beef, veal, lamb, and pork):  Refrigerate 3 to 5 days.
  • Cooked meat, poultry, and seafood: Store in the refrigerator 3 to 4 days.

Sunday, January 29, 2012

विरोध

भारत की युवा पीढ़ी ने विरोध को देखा, सुना और समझा विरोध की अवधारणा कोई नई नहीं है लेकिन आवाज़ उठाने की हिम्मत में एक नयापन ज़रुर महसूस हुआ है.  वैश्वीकरण के इस दौर में विद्रोही और विरोध के मायने नकारात्मक बना दिए गए हैं लेकिन अगर दुनिया अपने इतिहास पर गौर करे तो विरोध जितनी सकारात्मक सोच कोई और नहीं है |


हर नया विचार पुराने विचार के विरोध पर ही खड़ा होता है. बदलाव विरोध से ही शुरु होता है चाहे वो बदलाव वैचारिक हो, सामाजिक हो या राजनीतिक|


अगर अर्जुन ने अपने धर्म के विरोध में शस्त्र त्यागने की कोशिश न की होती तो श्रीकृष्ण गीता का पाठ शायद ही पढ़ाते. बौद्ध धर्म की अवधारणा हिंदू धर्म की कुरीतियों के ख़िलाफ़ ही जन्मी होगी और यही बात जैन धर्म के बारे में भी कही जा सकती है कबीर का 'निर्गुण' विरोध का ही प्रतीक है कुरीतियों के ख़िलाफ़ |


यही कारण है कि विरोध को हमेशा महत्व दिया जाता रहा है. हां क्षणिक लाभ के लिए लोग भले ही विरोध न करने का मंत्र देते रहे हों लेकिन हम सभी जानते हैं कि सही मुद्दे पर विरोध कभी बेकार नहीं होते|


बिना विरोध के न तो कोई सुधार हुआ है और न होगा विरोध एक मौलिक हथियार|इसलिए विरोध जारी रहे बस मुद्दे ईमानदार हों.

Saturday, January 28, 2012

Basant Panchami


Vasant Panchami also known as Basant Panchami or Shree Panchami” . This hindu festival celebrating Saraswati, the goddess of knowledge , music and art . It is celebrated every year on the fifth day of the Hindu Panchang Month Magh.There are many  Tradition follows on this day.   During this festival childrens are taught to write their first words , Brahmins are fed.  Ancestor worship (Pitr-tarpan) is performed, The god of love Kamadeva is worshipped.
Many schools, Colleges, educational institutions organise special prayer for Sarasvati.The colour yellow also plays an important role in this festival, in that people usually wear yellow garments, Saraswati is worshipped dressed in yellow, and yellow sweets are consumed within the families.

Friday, January 27, 2012

आठवी सालगिरह

आठ साल ,दो हज़ार नौ सौ बाईस दिन ....पीछे देखने पर अद्भुत अहसास होता है  २६ जनवरी २००४ को शादी और आज आठवी सालगिरह ,धन्यवाद है उस प्रभु का जिसने जीवन की पटरी के हम दोनों पहियों को सामान धरातल प्रदान किया ...वैसे कही कही उतार चढाव का सामना करना पड़ा ।

आठ साल बड़ा समय नहीं है पर आज जब आस पास देखने पर लगता है की आठ महीने भी निकालना जिस संसार में कठिन है नए जीवन साथी और  परिवार के साथ, वहा आठ साल उपलब्धि सामान है ।जहा लोग हर पल हतु धन्यवाद देते है हमें आठवे साल में ख़ुशी थी ...

फैसला मेरी तरफ से यही था की किसी तरह का मनमुटाव न हो ....सयम दोनों ओर से बरता जा रहा था ।इसी बीच हमारे पुत्र से रहा नहीं गया "आज आप जिस तरह से हो रोज़ ऐसे क्यों नहीं रह सकते " बात मे दम था ।

आख खुलते ही सामने एक तोहफा  ,छब्बीस जनवरी की छुट्टी लोगो के बधाई फ़ोन कई सीखे ...कई शुभकामनाए  तैयार हो कर गुरूजी के आश्रम की आशीर्वाद लेने निकल पड़ा ....दोपहर २ बजे तक वापसी फिर वो  फूलो के गुलदस्ते  जो बधाई देते और प्रेरणा देते की इस तरह आठ से साठ तक चले चलो !

झील का किनारा ...शाम का समां ..और जीवन साथी का साथ ! बस यही वो पल था जो अविभूत कर रहा था ।
आज फिर वो बाते वो वादे ... यह समय यु ही चलता रहे यह ख़ुशी के पल हमेशा साथ रहे ....



Tuesday, January 24, 2012

शब्द कैसे बदलते अर्थ ?

शब्दों का इतिहास उठाकर देखें तो पता चलेगा कि कैसे अर्थ का अनर्थ हुआ है. क्या आप को मालूम है कि पहले अंग्रेज़ी में नाइस का मतलब बेवक़ूफ़ और सिली का मतलब अच्छा होता था लेकिन क्या आप को मालूम है कि हम आज जिससिली (silly) शब्द से परिचित हैं और इसका प्रयोग हम foolish, senseless या stupid (यानी मूर्ख, बेवक़ूफ़, कम बुद्धि वाला, लापरवाह, बच्चों जैसा वग़ैरह) के तौर पर करते हैं वह और किन अर्थों में प्रयोग होता रहा है..


सिली (silly) का पहला प्रयोग हमें प्राचीन अंग्रेज़ी (Old English) में इस प्रकार मिलता है sælig जिसका अर्थ होता था fortuitous, happy या prosperous (क़िस्मतवर, भाग्यवान, ख़ुश या सुखी और अमीर).13वीं शताब्दी के बाद से सिली के अर्थ में और विस्तार आया और पवित्र या आदर्णीय के अर्थ के साथ इसका अर्थ मासूम (innocent) भी लिया जाने लगा. लेकिन इस अर्थ के आते ही इसके दूसरे पर्याय सामने आए जो नकारात्मक अर्थ रखते थे जैसे हार्मलेस..16वीं शताब्दी में सिली के इस अर्थ deserving of pity या दया का पात्र, helpless या मजबूर, बेबस, लाचार के संदर्भ में नया अर्थ विकसित हुआ .मिसाल के तौर पर हॉलिनशेड के क्रॉनिकिल में लिखा गया है कि a sillie footman shoots a man of higher social status यानि एक गंवार ने एक बड़े आदमी को मार डाला.आज का अर्थ भी 16वीं शताब्दी से ही प्रयोग में है जिसका अर्थ है foolish, senseless या stupid (यानी मूर्ख, बेवक़ूफ़, कम बुद्धि वाला, लापरवाह, बच्चों जैसा वग़ैरह).


क्या आप को मालूम है कि Nice का प्रयोग पहले मूर्ख के लिए किया जाता था. इसे फ़्रांसीसी भाषा के शब्द नाइस से लिया गया है जिसका अर्थ स्टुपिड यानी मूर्ख होता है. यह फ़्रांसीसी शब्द स्पेनिश के शब्द necio से लिया गया है."



अंग्रेज़ी भाषा में ऐसे बहुत सारे शब्द हैं जिनका अर्थ बहुत ही बदल गया है. यहाँ तक कि वह बिल्कुल विपरीत अर्थ में आज प्रयोग हो रहा है, मिसाल के तौर पर इन शब्दों को देखें कि इनका असली अर्थ क्या था और अब क्या है.
Pretty शब्द को पुरानी अंग्रेज़ी में cunning, crafty, और फिर clever, skilful, pleasing के अर्थ में प्रयोग किया जाता था.
Awful शब्द को आज हम भद्दे और बुरे के अर्थ में इस्तेमाल करते हैं लेकिन पहले इसका प्रयोग deserving of awe यानी आदर के योग्य के लिए होता था.
Brave शब्द आज बहादुर के मानी में प्रयोग होता है लेकिन पहले यह cowardice बुज़दिली के लिए प्रयोग होता था जैसा कि हम bravado में देख सकते हैं.
Counterfeit का आज हम जाली और नक़ली के अर्थ में प्रयोग करते हैं लेकिन पहले इसका legitimate copy असली कॉपी या प्रति के रूप में प्रयोग होता था.
Girl शब्द आज लड़की के लिए प्रयोग होता है लेकिन पहले यह लड़के लड़की दोनों के लिए प्रयोग किया जाता था young person of either sex.
Notorious शब्द का प्रयोग बदनाम के लिए करते हैं लेकिन पहले इसे famous यानी मशहूर के लिए इस्तेमाल किया जाता था.
Quick का प्रयोग तेज़ के लिए करते हैं लेकिन पहले alive के लिए इसका इस्तेमाल किया जाता था जैसा कि quicksilver में देखा जा सकता है.
Tell का प्रयोग आज हम कहने के लिए करते हैं लेकिन पहले इसे to count यानी गिनने के लिए इस्तेमाल किया जाता था जैसा कि हम आज भी किसी बैंक में मौजूद teller के रूप में पाते हैं जहां रक़म गिन कर दी जाती है.
Truant शब्द का प्रयोग हम स्कूल से भागने वाले बच्चे या ज़िम्मेदारी से बचने वाले आदमी के लिए करते हैं लेकिन पहले इसे beggar यानी भिखारी के लिए प्रयोग किया जाता था.
नाइस का प्रयोग इतने भिन्न अर्थों में किया जाता है कि ऑक्सफ़ोर्ड डिक्शनरी ने इसकी 17 परिभाषा दी है.
तो आपने देखा कि अंग्रेज़ी भाषा में कई शब्दों ने अपना कितना अर्थ बदला है. 


Monday, January 23, 2012

नेताजी सुभाषचन्द्र बोस..

 "Give me blood and I will give you freedom
                                      

Here are some words from Netaji's speech for you ...

"Today is the proudest day of my life. Today it has pleased Providence to give me the unique privilege and honour of announcing to the whole world that India's Army of Liberation has come into being. This army has now been drawn up in military formation on the battlefield of Singapore, which was once the bulwark of the British Empire.

This is not only the Army that will emancipate India from the British yoke; it is also the Army that will hereafter create the future national army of Free India. Every Indian must feel proud that this Army, his own Army, has been organized entirely under Indian leadership and that when the historic moment arrives, under Indian leadership it will go to battle.
 


I have said that today is the proudest day of my life. For an enslaved people, there can be no greater pride, no higher honor, than to be the first soldier in the army of liberation. But this honor carries with it a corresponding responsibility and I am deeply conscious of it. I assure you that I shall be with you in darkness and in sunshine, in sorrow and in joy, in suffering and in victory. For the present, I can offer you nothing except hunger, thirst, privation, forced marches and death. But if you follow me in life and in death, as I am confident you will, I shall lead you to victory and freedom. It does not matter who among us will live to see India free. It is enough that India shall be free and that we shall give our all to make her free. May God now bless our Army and grant us victory in the coming fight ! 

Inqualab Zindabad ! Azad Hind Zindabad !"



This is from some of the speeches of NetaJi Subhash Chandra Bose .


Jai Hind.

Thursday, January 12, 2012

The Chameleon – गिरगिट

    Chameleons
Someone could be excused for thinking that when God designed Chameleons he was in a very creative and imaginative mood, or that he assembled them from spare parts that didn't fit easily into the rest of his creation.

                                                                                                                                        
             

Chameleon a lizard which changes colour always attracted mankind . Chameleon means ‘Earth Lion’.   In the morning they squeeze their sides together and puff out their chins, flattening their bodies to create more surface area. Dark colors absorb heat better, so the side of the chameleon facing the sun becomes almost black, while the other remains it usual color !
                                                                                 
There are more than 100 types of chameleons.
Most change from brown to green and back. 

A change can occur in 20 seconds! How does this color "magic" happen?




                                                                                                                           

Chameleons are born with special cells that have a color, or pigment, in them. These cells lie in layers under the chameleon's outer skin. They are called chromatophores (kro MAT uh fors). The top layers of chromatophores have red or yellow pigment. The lower layers have blue or white pigment. When these pigment cells change, the chameleon's skin color changes.
                   
               

Many people think chameleons change color to blend in with their surroundings. Scientists disagree. Their studies show that light, temperature, and mood cause chameleons to change color. Sometimes changing color can make the chameleon more comfortable. Sometimes it helps the animal communicate with other chameleons.

Wednesday, January 11, 2012

राजस्थान में भी बहती है नदियां


माही नदी                                        माही नदी 





















१) चम्बल नदी - 




इस नदी का प्राचीन नाम चर्मावती है। कुछ स्थानों पर इसे कामधेनु भी कहा जाता है। यह नदी मध्य प्रदेश के मऊ के दक्षिण में मानपुर के समीप जनापाव पहाड़ी (६१६ मीटर ऊँची) के विन्ध्यन कगारों के उत्तरी पार्श्व से निकलती है। अपने उदगम् स्थल से ३२५ किलोमीटर उत्तर दिशा की ओर एक लंबे संकीर्ण मार्ग से तीव्रगति से प्रवाहित होती हुई चौरासीगढ़ के समीप राजस्थान में प्रवेश करती है। यहां से कोटा तक लगभग ११३ किलोमीटर की दूरी एक गार्ज से बहकर तय करती है। चंबल नदी पर भैंस रोड़गढ़ के पास प्रख्यात चूलिया प्रपात है। यह नदी राजस्थान के कोटा, बून्दी, सवाई माधोपुर व धौलपुर जिलों में बहती हुई उत्तर-प्रदेश के इटावा जिले मुरादगंज स्थान में यमुना में मिल जाती है। यह राजस्थान की एक मात्र ऐसी नदी है जो सालोंभर बहती है। इस नदी पर गांधी सागर, राणा प्रताप सागर, जवाहर सागर और कोटा बैराज बांध बने हैं। ये बाँध सिंचाई तथा विद्युत ऊर्जा के प्रमुख स्रोत हैं। चम्बल की प्रमुख सहायक नदियों में काली, सिन्ध, पार्वती, बनास, कुराई तथा बामनी है। इस नदी की कुल लंबाई ९६५ किलोमीटर है। यह राजस्थान में कुल ३७६ किलोमीटर तक बहती है।




२) काली सिंध - 




यह चंबल की सहायक नदी है। इस नदी का उदगम् स्थल मध्य प्रदेश में देवास के निकट बागली गाँव है। कुध दूर मध्य प्रदेश में बहने के बाद यह राजस्थान के झालावाड़ और कोटा जिलों में बहती है। अंत में यह नोनेरा (बरण) गांव के पास चंबल नदी में मिल जाती है। इसकी कुल लंबाई २७८ किलोमीटर है।
३) बनास नदी - 




बनास एक मात्र ऐसी नदी है जो संपूर्ण चक्र राजस्थान में ही पूरा करती है। बनअआस अर्थात बनास अर्थात (वन की आशा) के रुप में जानी जाने वाली यह नदी उदयपुर जिले के अरावली पर्वत श्रेणियों में कुंभलगढ़ के पास खमनौर की पहाड़ियों से निकलती है। यह नाथद्वारा, कंकरोली, राजसमंद और भीलवाड़ा जिले में बहती हुई टौंक, सवाई माधोपुर के पश्चात रामेश्वरम के नजदीक (सवाई माधोपुर) चंबल में गिर जाती है। इसकी लंबाई लगभग ४८० किलोमीटर है। इसकी सहायक नदियों में बेडच, कोठरी, मांसी, खारी, मुरेल व धुन्ध है। (i )बेडच नदी १९० किलोमीटर लंबी है तथा गोगंडा पहाड़ियों (उदयपुर) से निकलती है। (ii )कोठारी नदी उत्तरी राजसामंद जिले के दिवेर पहाड़ियों से निकलती है। यह १४५ किलोमीटर लंबी है तथा यह उदयपुर, भीलवाड़ा में बहती हुई बनास में मिल जाती है।(iii) खारी नदी ८० किलोमीटर लंबी है तथा राजसामंद के बिजराल की पहाड़ियों से निकलकर देवली (टौंक) के नजदीक बनास में मिल जाती है।
४) बाणगंगा - 




इस नदी का उदगम् स्थल जयपुर की वैराठ की पहाड़ियों से है। इसकी कुल लंबाई ३८० किलोमीटर है तथा यह सवाई माधोपुर, भरतपुर में बहती हुई अंत में फतेहा बाद (आगरा) के समीप यमुना में मिल जाती है। इस नदी पर रामगढ़ के पास एक बांध बनाकर जयपुर को पेय जल की आपूर्ति की जाती है।
५) पार्वती नदी - 




यह चंबल की एक सहायक नदी है। इसका उदगम् स्थल मध्य प्रदेश के विंध्यन श्रेणी के पर्वतों से है तथा यह उत्तरी ढाल से बहती है। यह नदी करया हट (कोटा) स्थान के समीप राजस्थान में प्रवेश करती है और बून्दी जिले में बहती हुई चंबल में गिर जाती है।
६) गंभीरी नदी - 




११० किलोमीटर लंबी यह नदी सवाई माधोपुर की पहाड़ियों से निकलकर करौली से बहती हुई भरतपुर से आगरा जिले में यमुना में गिर जाती है।
७) लूनी नदी - 




यह नदी अजमेर के नाग पहाड़-पहाड़ियों से निकलकर नागौर की ओर बहती है। यह जोधपुर, बाड़मेर और जालौर में बहती हुई यह गुजरात में प्रवेश करती है। अंत में कच्छ की खाड़ी में गिर जाती है। लूनी नदी की कुल लंबाई ३२० किलोमीटर है। यह पूर्णत: मौसमी नदी है। बलोतरा तक इसका जल मीठा रहता है लेकिन आगे जाकर यह खारा होता जाता है। इस नदी में अरावली श्रृंखला के पश्चिमी ढाल से कई छोटी-छोटी जल धाराएँ, जैसे लालरी, गुहिया, बांड़ी, सुकरी जबाई, जोजरी और सागाई निकलकर लूनी नदी में मिल जाती है। इस नदी पर बिलाड़ा के निकट का बाँध सिंचाई के लिए महत्वपूर्ण है।
८) मादी नदी - 




यह दक्षिण राजस्थान मुख्यत: बांसबाड़ा और डूंगरपुर जिले की मुख्य नदी है। यह मध्य प्रदेश के धार जिले में विंध्यांचल पर्वत के अममाऊ स्थान से निकलती है। उदगम् से उत्तर की ओर बहने के पश्चात् खाछू गांव (बांसबाड़ा) के निकट दक्षिणी राजस्थान में प्रवेश करती है। बांसबाड़ा और डूंगरपूर में बहती हुई यह नदी गुजरात में प्रवेश करती है। कुल ५७६ किलोमीटर बहने के पश्चात् यह खम्भात की खाड़ी में गिर जाती है। इसकी प्रमुख सहायक नदियों में सोम, जाखम, अनास, चाप और मोरन है। इस नदी पर बांसबाड़ा जिले में माही बजाज सागर बांध बनाया गया है।
९) धग्धर नदी - 




यह गंगानगर जिले की प्रमुख नदी है। यह नदी हिमालय पर्वत की शिवालिक श्रेणियों से शिमला के समीप कालका के पास से निकलती है। यह अंबाला, पटियाला और हिसार जिलों में बहती हुई राजस्थान के गंगानगर जिले में टिब्वी के समीप उत्तर-पूर्व दिशा में प्रवेश करती है। पूर्व में यह बीकानेर राज्य में बहती थी लेकिन अब यह हनुमानगढ़ के पश्चिम में लगभग ३ किलोमीटर दूर तक बहती है।
हनुमानगढ़ के पास भटनेर के मरुस्थलीय भाग में बहती हुई विलीन हो जाती है। इस नदी की कुल लंबाई ४६५ किलोमीटर है। इस नदी को प्राचीन सरस्वती के नाम से भी जाना जाता है।
१०) काकनी नदी - 




इस नदी को काकनेय तथा मसूरदी नाम से भी बुलाते है। यह नदी जैसलमेर से लगभग २७ किलोमीटर दूर दक्षिण में कोटरी गाँव से निकलती है। यह कुछ किलोमीटर प्रवाहित होने के उपरांत लुप्त हो जाती है। वर्षा अधिक होने पर यह काफी दूर तक बहती है। इसका पानी अंत में भुज झील में गिर जाता है।
११) सोम नदी - 




उदयपुर जिले के बीछा मेड़ा स्थान से यह नदी निकलती है। प्रारंभ में यह दक्षिण-पूर्व दिशा में बहती हुई डूंगरपूर की सीमा के साथ-साथ पूर्व में बहती हुई बेपेश्वर के निकट माही नदी से मिल जाती है।
१२) जोखम - 




यह नदी सादड़ी के निकट से निकलती है। प्रतापगढ़ जिले में बहती हुई उदयपुर के धारियाबाद तहसील में प्रवेश करती है और सोम नदी से मिल जाती है।
१३) साबरमती - 




यह गुजरात की मुख्य नदी है परंतु यह २९ किलोमीटर राजस्थान के उदयपुर जिले में बहती है। यह नदी पड़रारा, कुंभलगढ़ के निकट से निकलकर दक्षिण की ओर बहती है। इस नदी की कुल लंबाई ३१७ किलोमीटर है।
१४) काटली नदी - 




सीकर जिले के खंडेला पहाड़ियों से यह नदी निकलती है। यह मौसमी नदी है और तोरावाटी उच्च भूमि पर यह प्रवाहित होती है। यह उत्तर में सींकर व झुंझुनू में लगभग १०० किलोमीटर बहने के उपरांत चुरु जिले की सीमा के निकट अदृश्य हो जाती है।
१५) साबी नदी -




यह नदी जयपुर जिले के सेवर पहाड़ियों से निकलकर मानसू, बहरोड़, किशनगढ़, मंडावर व तिजारा तहसीलों में बहने के बाद गुडगाँव (हरियाणा) जिले के कुछ दूर प्रवाहित होने के बाद पटौदी के उत्तर में भूमिगत हो जाती है।
१६) मन्था नदी -
यह जयपुर जिले में मनोहरपुर के निकट से निकलकर अंत में सांभर झील में जा मिलती है।
जिलानुसार राजस्थान की नदियां 
१) अजमेर - साबरमती, सरस्वती, खारी, ड़ाई, बनास 
२) अलवर - साबी, रुपाढेल, काली, गौरी, सोटा 
३) बाँसबाड़ा - माही, अन्नास, चैणी 
४) बाड़मेर - लूनी, सूंकड़ी 
५) भरतपुर - चम्बल, बराह, बाणगंगा, गंभीरी, पार्वती 
६) भीलवाडा - बनास, कोठारी, बेडच, मेनाली, मानसी, खारी 
७) बीकानेर - कोई नदी नही 
८) बूंदी – कुराल 
९) चुरु - कोई नदी नही 
१०) धौलपुर – चंबल 
११) डूंगरपुर - सोम, माही, सोनी 
१२) श्रीगंगानगर – धग्धर 
१३) जयपुर - बाणगंगा, बांड़ी, ढूंढ, मोरेल, साबी, सोटा, डाई, सखा, मासी
१४) जैसलमेर - काकनेय, चांघण, लाठी, धऊआ, धोगड़ी 
१५) जालौर - लूनी, बांड़ी, जवाई, सूकड़ी 
१६) झालावाड़ - काली सिन्ध, पर्वती, छौटी काली सिंध, निवाज 
१७) झुंझुनू - काटली
१८) जोधपुर - लूनी, माठड़ी, जोजरी 
१९) कोटा - चम्बल, काली सिंध, पार्वती, आऊ निवाज, परवन 
२०) नागौर – लूनी 
२१) पाली - लीलड़ी, बांडी, सूकड़ी जवाई 
२२) सवाई माधोपुर - चंबल, बनास, मोरेल 
२३) सीकर - काटली, मन्था, पावटा, कावंट 
२४) सिरोही - प. बनास, सूकड़ी, पोसालिया, खाती, किशनावती, झूला, सुरवटा 
२५) टोंक - बनास, मासी, बांडी 
२६) उदयपुर - बनास, बेडच, बाकल, सोम, जाखम, साबरमती 
२७) चित्तौडगढ़ - वनास, बेडच, बामणी, बागली, बागन, औराई, गंभीरी, सीवान, जाखम, माही।

Tuesday, January 10, 2012

R U Snooping ?

Private zones are fast disappearing ,with Facebook,Twitter and apps chronicling our every  move.So its a relief that a majority of our respondents respect the privacy of their partners.In all 16 countries most people say they don't peek at their partner's texts or emails.


A lot of parents can give Sherlock Holmes a run for his money. When it comes to detective work, parents have serious skills. You’ve heard the stories—mom finds condom in son’s wallet, dad discovers daughter’s secret boyfriend.The parents with kids, with age of 12 and above, every 24 dads out of 100 and 75 moms out of 100 snoop there kids account ."It is my duty and right to check on what my children are getting themselves into" is there excuse !


Country                            Snoopers
Brazil                               45 %
India                                33 %
Russia                               33 %
South Africa                         31 %
Malaysia                             26 %
Philippines                          25 %
Netherlands                          23 %
Spain                                23 %
U K                                  23 %
Canada                               21 %

Mexico                               17 %
U S                                  17 %
Germany                              15 %
China                                13 %
Australia                            11 %


"I never read my wife's message " says Nihas 28 from Kerala ."If there was anything worth sharing ,we would." Even so India ranks a high second for snooping .Meanwhile ,respondents under age 45 reported much more snooping than older ones,and sometimes it was difficult not to give in to suspicion .


Social media snooping refers to an employer's monitoring of employee social media use while at work. Employers may choose to monitor employee social media use because they are concerned about efficiency. There is also the potential risk that employees will post sensitive information or derogatory comments about managers and colleagues.



 Frieda, 46, says, “Snooping is an invasion of privacy and conveys a total lack of trust in your children. Every child needs some privacy, especially as they get older.”


Now ,What's your call on Snooping ?





Monday, January 9, 2012

Free speech ..

An eloquent and unabashedly spirited defence of the absolute right of free speech even for those citizens who are lacking in manners ,judgment and sanity .All modern successors from Hitler to Aurangzeb have insisted that only one man or one party or one book represents the absolute truth and to challenge it is folly or worse.But all it takes is little one to blurt out the inconvenient truth that emperor is as naked as the day he was born.

Here my opinion is simple one.The right of others to free expression is part of my own.If someone's voice is silenced ,then I am deprived of the right to hear .I think a right is a right ,if this right is denied to one faction it will not stop there.Almost all the free speech cases in the human record involve the strange concept of blasphemy,which is actually the simple concept that certain things just cannot be said or heard.

Democracy and pluralism do indeed demand a certain commitment to good manners,but Islam is a religion that makes large claims for itself and can hardly demand that such claims be immune from criticism.Famines are almost invariably caused not by shortage of food but by stupid hoarding in times of crisis.Bear this in mind whenever you hear free expression described as a luxury.

Wherever the light of free debate and expression is extinguished ,the darkness is deeper ,more palpable and more protracted.But the urge to shut out bad news or opinions will always be strong one,which is why the battle to reaffirm freedom of speech needs to be refought in every generation.

Sunday, January 8, 2012

Social Media and Branding

·           ·           ·            ·            ·            ·             ·            ·           ·             
The social media space is blazing hot right now. While consumers realised  very early that they could do a lot with it, now brands are realising this. There was a lot of good work happening by social media agencies, consultants and brands and those records were being put up on individual sites and blogs. However, not all users had easy access to it and not all brands and businesses were able to show their good work to a larger audience. With the increase in social media usage, a lot of people wanted to build careers in it. Business owners too wanted to use social media for their businesses. But most didn't know where to start.


Share

Social Wavelength and the likes have a different set of offerings. They help brands with their social media strategies and also provide execution services.Brands don't know yet what they are doing on social media. They are yet to come out of the traditional media mould. Also, back then, Facebook was the beginning and end of social media. Now I can safely say there are a lot of brands who are willing to experiment. This is the only medium so far that allows a two-way communication. Brands were not used to two-way communication that has the potential to go viral. Now many adopt a proactive approach. They are realising that marketing is not the only takeaway. Social media can also support other business functions like customer support, market research, lead generation, senior management brand building, even hiring.


 ·  · 

Saturday, January 7, 2012

प्रवासी

जयपुर में आज से तीन दिवसीय प्रवासी भारतीय समेलन  का आगाज़ होगा प्रदेश निवेश की और देख रहा है हर कोई इस मौके को भुनाने को बेताब है प्रदेश के कई लोग जो विदेशो मे है वे यहाँ निवेश की संभावना तलाशेंगे .
                                                        
क्या होते हैं प्रवासी भारतीय, तो आपकी जानकारी के लिए बताना चाहूँ कि भारतीय प्रवासी वह लोग हैं जो भारत छोड़ कर विश्व के दूसरे देशों में जा बसे हैं। प्रवासी भारतीय दिवस प्रति वर्ष भारत सरकार द्वारा ९ जनवरी को मनाया जाता है क्योंकि इस दिन महात्मा गाँधी दक्षिण अफ्रीका से स्वदेश वापस आये थे। इस दिवस को मनाने की शुरुवात २००३ से हुई थी। प्रवासी भारतीय दिवस मनाने की संकल्पना स्वर्गीय लक्ष्मीमल सिंघवी के दिमाग की उपज थी। इस अवसर पर प्रायः तीन दिवसीय कार्यक्रम आयोजित किया जाता है। इसमें अपने क्षेत्र में विशेष उपलब्धि प्राप्त करने वाले भारतवंशियों को सम्मानित किया जाता है तथा उन्हें प्रवासी भारतीय सम्मान प्रदान किया जाता है। यह आयोजन भारतवंशियों से संबन्धित विषयों और उनकी समस्यायों की चर्चा का मंच भी है। 


जहां भारतीय बसे हैं वहाँ उन्होने आर्थिक तंत्र को मज़बूती प्रदान की है और बहुत कम समय में अपना स्थान बना लिया है। जिसका सबसे बड़ा उदाहरण है “लक्ष्मी मित्तल” यह भारतीय प्रवासीयों में जाना माना नाम है। जिन्होंने आज भी बाहर रहकर भी भारतीय नागरिकता नहीं छोड़ी है।


यह दुर्भाग्य ही कहा जायेगा कि जिस भारतीय संस्कृति ने विश्व को राह दिखाई एवं दुनिया के प्राचीनतम ग्रन्थ, वेदों की एक लाख श्रुतियों, महाभारत के राजनीतिक दर्शन, गीता की समग्रता, रामायण के रामराज्य, पौराणिक जीवन दर्शन एवं भागवत दर्शन से लेकर संस्कृति के तमाम अध्याय रचे, आज उस संस्कृति को पाश्चात्य संस्कृति से ख़तरा उत्पन्न होने लगा है। साधारण लोगों की जिनका नाम मशहूर नहीं है किन्तु फिर भी यह लोग विदेश में  रह कर भी भारतीय लोग की सेवा करने से नहीं चूकते। जैसे  के कुछ एक डॉक्टर को ही ले लीजिये जो की भारतीय है। विदेश में  रहने वाले अन्य भारतवासी जब कभी किसी रोग की चिकित्सा हेतु अस्पताल जाते हैं या यहाँ के किसी क्लिनिक  में जाते है जिसे आम तौर पर यहाँ शैल्य क्रिया का  कहा जाता है। तब कोई अपने मुँह से कहें ना कहें मगर उसकी पहली पसंद एवं मंशा यही होती है कि यदि कोई भारतीय डॉक्टर मिल जाये तो अच्छा होगा। क्योंकि ज्यादा तर हिंदुस्तानियों की सोच यही है कि भारतीय डॉक्टर होगा तो उस से वह अपनी बात ज्यादा स्पष्ट रूप से समझा सकेंगे और वो भी उनकी बात को और डॉक्टरों के मुकाबले ज्यादा अच्छे से समझने में सक्षम होगा। 


 विदेशी  लोगों को किस बात की जलन या ईर्षा हो सकती है उनका देश तो पहले ही हमारे देश के मुकाबले में काफी हद तक उन्नत है। मगर ऐसा नहीं है उनकी मानसिकता आज के हालात में यह हो गई है कि बाहर से अर्थात् दूसरे देशों से लोग आकर उनकी नौकरीयाँ छीन रहे हैं जिस नौकरी पर यहाँ का नागरिक होने के नाते उनका प्रथम अधिकार होना चाहिए, वह नौकरीयाँ भी आज की तारीख़ में उनको न मिल कर दूसरे देश के नागरिकों को आसानी से मिल रही है। उसमें भी सबसे ज्यादा भारतीय ही हैं और उसमें भी सर्वाधिक IT कंपनियाँ जैसे टी. सी. एस. या इनफ़ोसिस  जैसी कई और साफ्टवेयर कंपनियाँ हैं जिसमें अधिकतर भारतीय लोग आप को आसानी से मिल जायेगे। जिसके चलते यहाँ के लोगों में इन्ही बातों को लेकर ख़ासा ग़ुस्सा देखने को मिलता है। यह उन्नति नहीं तो और क्या है। यह बात अलग है कि यह उन्नति किसी यहाँ रहने वाले भारतीय प्रवासी की कम और देश की ज्यादा है। 



Friday, January 6, 2012

आटोएक्सपो 2012


ऑटो एक्सपो-2012


5 से 11 जनवरी 2012 के दौरान आयोजित होने वाले इस 11वें ऑटो एक्सपो में देश के वाहन और कलपुर्जों के निर्माता तो बड़े पैमाने पर भाग लेंगे साथ ही 24 देशों से 1,500 कंपनियों और प्रदर्शक भी भाग लेंगे.यह 11वां आटोएक्सपो है.प्रदर्शनी में बेलारुस,कनाडा,चीन, फ्रांस, जर्मनी, हांगकांग, जापान, मलेशिया,नीदरलैंड, पुर्तगाल,रुस,स्विटजरलैंड, सिंगापुर,थाइलैंड,तुर्की और संयुक्त अरब अमीरात से कई बड़े वाहन निर्माता और कलपुर्जों के निर्माता ऑटो एक्सपो में शामिल.


http://photogallery.webdunia.com/hindi/FullScreen.aspx?GalleryId=1556


पूरी दुनिया का ध्यान भारतीय आटोमोटिव उद्योग की तरफ है और शायद यह अपने चरम पर . वैश्विक मंदी के इस दौर में आटो एक्सपो के आर्थिक परिवेश में नया जोश भरने की उम्मीद है.इसमें पेट्रोल और डीजल से आगे बढ़कर इलेक्ट्रिक और हाइब्रिड मोबिलिटी जैसे नई तकनीक के वाहन भी उतारे जायेंगे.


होंडा की नई कार
पहले दिन लगभग 40 कार, बाइक और कॉमर्शियल वाहनों की लांचिंग हुई .मंदी के दौर में ये तोहफा है खास मध्यमवर्गीय खरीददारों के लिए. ऑटो एक्सपो में अंतर्राष्ट्रीय कंपनियां लेकर आई हैं छोटी गाड़ियों के नए मॉडल्सवैसे छोटी गाड़ियों की रानी माने जाने वाली मारुति भारतीय बाज़ार में इस अंतर्राष्ट्रीय मुकाबले के लिए तैयार है.छोटी कारें उतार रही है मारुति , स्मॉल कार टेक्नोलॉजी का कमाल होंगी और 660 सीसी इंजिन से चलेंगी .


कारों के शौकीन लोगों के लिए भी कुछ खास है. मर्सिडीज़, ऑडी और बीएमडब्ल्यू, तीनों कंपनियां एक करोड़ से महंगी गाड़ियां बाज़ार में उतार रही हैं. .ऑटो एक्सपो में 20 लाख से भी ज़्यादा लोगों के आने की उम्मीद है.

Thursday, January 5, 2012

चिठ्ठी आई है .....सात समुंदर पार गया तू, हमको जिंदा मार गया तू ......चिठ्ठी आई है.

संचार क्रांति के इस दौर में खास तौर पर महानगरों में ऐसी  धारणा बनती जा रही है कि अब चिट्ठियों का कोई महत्व नहीं रहा। उनको मोबाइल फोनों, यातायात के तेज साधनो, इंटरनेट और तमाम अन्य माध्यमो ने बुरी तरह प्रभावित किया है। पर इतने सारे बदलाव के बाद भी चिट्ठियों का जादू खास तौर पर देहाती इलाकों में कायम है और डाकखानो के द्वारा रोज भारत में साढे चार करोड चिट्ठियां भेजी जा रही हैं। भारतीय सैनिकों के बीच रोज सात लाख से अधिक चिट्ठियां बांटी जा रही हैं और आज भी देश के तमाम दुर्गम गावों में डाकिए का उसी बेसब्री से इंतजार किया जाता है जैसा दशको पहले किया जाता था।




संचार क्रांति के क्षेत्र में भी शहर और देहात के बीच  भारी विषमता गहरा रही है।  देश में हर माह 70 लाख से एक करोड के बीच में फोन लग रहे हैं फिर भी  देहाती इलाकों की तस्वीर बहुत धुंधली है। देहाती फोनो का जिम्मा आज भी सार्वजनिक क्षेत्र की कंपनी बीएसएनएल ने ही संभाला है और निजी कंपनियां इन इलाकों में जाने से कतरा रही हैं। भले ही 28  करोड से अधिक फोनो के साथ भारत का दूरसंचार नेटवर्क दुनिया का तीसरा और एशिया का दूसरा सबसे बडा नेटवर्क बन गया है।  पर दहातीं दूरसंचार  घनत्व अभी 9 फीसदी भी नहीं हो पायाहै। अगर ग्यारहवीं योजना के अंत तक की गयी परिकल्पना के अनुसार ग्रामीण दूरसंचार घनत्व बीस करोड फोनो के साथ 25 फीसदी हो जाता है तो भी भारत में देहात के 100 में 75 लोगों के पास फोन नहीं होंगे।




पत्रों के आधार पर ही तमाम भाषाओं में जाने कितनी किताबें लिखी जा चुकी हैं और राजनेताओं के पत्रों ने विवादों की नयी विरासत भी लिखी। पत्र व्यवहार की परंपरा भारत में बहुत पुरानी है। माध्यम डाकिया रहा हो या हंस ,हरकारा रहा हो या फिर कबूतर पर पत्र लगातार पंख लगाकर उडते रहे हैं।  नल -दमयती  के बीच पत्राचार हंस के माध्यम से होता था तो रूक्मिणी का पत्र श्रीकृष्ण को विपृ के माध्यम से मिलता था। माक्र्स और एंजिल्स के बीच ऐतिहासिक मित्रता का सूत्र पत्र ही थे।  इसी तरह रवींद्र नाथ टैगोर ने दीन बंधु एंड्रूज को जो पत्र लिखा था वह लेटर टू ए  फ्रेंड नाम से एक किताब का आकार लेने में सफल रही




दुनिया का सबसे पुराना ज्ञात पत्र 2009 ईसा पूर्व के कालखंड का सुमेर का माना जाता है।  मिट्टी की पटरी पर यह पत्र लिखा गया था। मनुष्य की विकास यात्रा के साथ पत्रों का सिलसिला भी शुरू हुआ और आदिवासी कबीलों ने संकेतो से संदेश की परंपरा शुरू की। लिपि  के आविष्कार के बाद पत्थरों से लेकर पत्ते पत्रों को भेजने का साधन बने। लेखन साधनो तथा डाक प्रणाली के व्यवस्थित विकास के बाद पत्रों  को पंख लगे । अगर तलाश करें तो  आपको ऐसा कोई नहीं मिलेगा जिसने कभी किसी को पत्र न लिखा या न लिखाया हो या पत्रों का बेसब्री से जिसने इंतजार  न किया हो। भारत में सीमाओं और दुर्गम इलाकों में तैनात हमारे सैनिक तो पत्रों का बहुत आतुरता से इंतजार करते हैं। संचार के और साधन उनको पत्रों सा संतोष नहीं दे पाते हैं। एक दौर वह भी था जब लोग पत्रों का महीनो इंतजार करते थे.पर अब वह बात नहीं।




भारतीय डाक तंत्र ने नीति निर्माताओं की तमाम उपेक्षा के बाद भी  खास तौर पर देहाती और दुर्गम इलाकों में पत्र भेजने के साथ साक्षरता अभियान तथा समाचारपत्रों को ऐतिहासिक  मदद की पहुंचायी है।  रेडियो के विकास में भी डाक विभाग का अहम योगदान रहा है। मनीआर्डर, डाक जीवन बीमा तथा डाकघर बचत बैंक खुद में बडी संस्था का रूप ले चुके हैं। यही नहीं कम ही लोग जानते हैं कि नोबुल पुरस्कार विजेता सीवी रमण, मुंशी प्रेमचंद, अक्कीलन, राजिंदर सिंह बेदी, देवानंद, नीरद सी चौधरी, महाश्वेता देवी  से लेकर कृष्णविहारी नूर डाक विभाग में कर्मचारी या अधिकारी रहे हैं