यह एक सत्य कथा है ......शायद उसकी जगह कोई भी हो सकता था पर वो था मजीद जो 17 वर्ष का था और एक दिन वो रास्ता भूल कर कसूर से सीमा पार चला गया और भारत के सीमा सुरक्षा बल के हाथ चढ़ गया.जाँचकर्ताओं ने कई दिनों की जाँच के बाद पाया कि मजीद जासूस या आतंकवादी नहीं है तो उन्होंने उसे अवैध रुप से सीमा पार करने के आरोप में जेल भेज दिया गया.मजीद को पंजाब और राजस्थान की चार जेलों में रखा गया और दो बार जज के समक्ष पेश किया गया.
साल 2001 में मजीद को मुशर्रफ़ और वाजपेयी की आगरा में हुई मुलाक़ात के कुछ दिनों बाद मानवाधिकारों के लिए काम करने वाली संस्थाओं के दबाव पर मजीद को रिहा करने का आदेश दिया गया था.लेकिन जुलाई 2010 तक अदालती फ़ैसले पर अमल नहीं हो सका.
आख़िरकार मजीद को जेल से निकाल कर अमृतसर पहुँचाया गया और विभिन्न जेलों से रिहा किए गए दूसरी पाकिस्तानी क़ैदियों के साथ वाघा सीमा पर पाकिस्तानी अधिकारियों के हवाले किया गया.मजीद को उनका भाँजा और छोटी मौसी किराए की गाड़ी में पाक-भारत सीमा पर लेने आए.
मजीद को बताया गया कि उनके पिता का 1994 में और माता का 2004 में निधन हो गया.बड़ी बहन के चार और छोटी के दो बच्चे हैं. यह लोग कसूर से लाहौर आ चुके हैं और कसूर वाला घर बेच दिया गया है.मगर मजीद ये सब कुछ नहीं सुन रहा था, उनका ध्यान कहीं ओर था और वह हर व्यक्ति को आँखे फाड़ फाड़ कर देख रहा था. 31 साल में दुनिया पूरी तरह से बदल चुकी थी.
जैसे ही गाड़ी लाहौर के सज़बाज़ार इलाक़े में पहुंची तो मोटर साइकल पर सवार चार लोगों ने आगे आकर उसे रोकने की कोशिश की.लेकिन गाड़ी के ड्राईवर ने रोकने के बजाए गाड़ी ओर तेज़ कर दी जिस पर मोटर साइकल पर सवार लोग आक्रोश में आ गए और उन्होंने गाड़ी पर सीधी फ़ायरिंग की.ड्राइवर उसी समय मर गया और गाड़ी खंबे से टकरा गई. मजीद, उनकी मौसी और भाँजे को घायल स्थिति में अस्पताल पहुँचाया गया.
अगली सुबह मजीद मर गया.अस्पताल प्रबंधन ने शव मजीद की बड़ी बहन के हवाले करते हुए एक फॉर्म भरने को कहा.
मजीद की बहन ने फॉर्म में लिखा.
नाम: अब्दुल मजीद
जन्म तिथि: 05 नवंबर 1962
मृत्यु तिथि: 29 जुलाई 2010
आयु: 17
जन्म तिथि: 05 नवंबर 1962
मृत्यु तिथि: 29 जुलाई 2010
आयु: 17
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