आज फिर चलते चलते राह पर मेरे कदम थम से गए
वो बाग़ वो खेत जो फटे है होट की तरह प्यास से
उस मेहनती किसान की सासे फूल चुकी है
फिर भी आस भरे नैनो से निहारता है जब वो हर बदली
तब दिल मेरा रो उठता है उन रिश्वत खोरो पे जो उस
किसान के बेटे को अंग्रेजी स्कूल की कक्षा में न बैठने देते है बिना एक बोरी धान के ।।
हर्ष
वो बाग़ वो खेत जो फटे है होट की तरह प्यास से
उस मेहनती किसान की सासे फूल चुकी है
फिर भी आस भरे नैनो से निहारता है जब वो हर बदली
तब दिल मेरा रो उठता है उन रिश्वत खोरो पे जो उस
किसान के बेटे को अंग्रेजी स्कूल की कक्षा में न बैठने देते है बिना एक बोरी धान के ।।
हर्ष
No comments:
Post a Comment