अँधेरा घुप्प अँधेरा
इसी अँधेरे से देश को निकालने के लिए बनाई सरकार और सरकारी महकमे ताकि आम कहे जाने वाले उस ख़ास को अपने परिवार और समाज के अलावा कोई चिंता न रहे । मगर सत्ता सुख ने इन्हें कुत्ता बना दिया अपने देश की तरक्की भूल अपने जेब की आमदनी पे जोर लगा दिया ।
आम कहे जाने वाले ख़ास की भी गलतिया है क्यों नहीं उसी क्षण उठ बैठा विरोध करने क्यों नहीं संभाला अपना कर्त्तव्य मगर नहीं साब उसे भी तो गलिया खोजनी थी लम्बे रास्ते को छोड़ जल्दबाजी में दौड़ जीतने का प्रयत्न और वाही प्रयत्न आदत में शुमार हो गया। गोया हमें क्कैसे दिखती उनकी गलतिया हम तो खुद बईमानी का चश्मा चढ़ा के इतराने लगे ।
शिक्षा सुना है एहम भूमिका निभाती है जवान की ज़िन्दगी सुधरने में ।इसी कथन को सार्थक करने बच्चो को पढ़ने का कार्य किया सम्भ्रांत कुलीन परिवारों ने और शुरुआत में नैतिकता के पाठ रखे गए पुस्तको में जो कहते थे अंधे को सड़क पार कराओ भूखे को अपना भोजन दो इत्यादि ।मगर समय के साथ जब बराबरी का दौर दिखने लगा तो लगा कल तक जो हुज़ूर के समक्ष ऊची नज़र नहीं करता या जूती सर पे रख चलता वो जूती मार के हक मांगने लायक होने लगा ।
इसी सोच ने किताबो से मोरल हटा साइंस को बढ़ावा दिया ।
पैसे को सर्वोच्च स्थान मिला क्युकी पैसा ठाट बात के साथ रुतबा लता है और फिर चलन आया की जिसके पास पैसा है उस से सवाल नहीं पूछीयॆ
पैसे से हर काम होने लगा यकीनन हर गलत काम । स्कूल में पैसा दे प्रवेश ... शिक्षक को पैसा दे पास करना .... पैसा दे के नौकर खरीदना तो ठीक यहाँ नौकरी खरीदी जाने लगी .....जब बचपन से नोटों की कीमत इतनी ज्यादा देखि तो वही बटोरने की हवस पनपी ।
पैसा फेक तमाशा देख का नंगा नाच चल् पड़ा भरत की भारत भूमि पे
एक अदना सी गलती की पाठ्यक्रम से सामाजिक ज्ञान को निकल फेकना आज कितना भरी पड़ा
इसी अँधेरे से देश को निकालने के लिए बनाई सरकार और सरकारी महकमे ताकि आम कहे जाने वाले उस ख़ास को अपने परिवार और समाज के अलावा कोई चिंता न रहे । मगर सत्ता सुख ने इन्हें कुत्ता बना दिया अपने देश की तरक्की भूल अपने जेब की आमदनी पे जोर लगा दिया ।
आम कहे जाने वाले ख़ास की भी गलतिया है क्यों नहीं उसी क्षण उठ बैठा विरोध करने क्यों नहीं संभाला अपना कर्त्तव्य मगर नहीं साब उसे भी तो गलिया खोजनी थी लम्बे रास्ते को छोड़ जल्दबाजी में दौड़ जीतने का प्रयत्न और वाही प्रयत्न आदत में शुमार हो गया। गोया हमें क्कैसे दिखती उनकी गलतिया हम तो खुद बईमानी का चश्मा चढ़ा के इतराने लगे ।
शिक्षा सुना है एहम भूमिका निभाती है जवान की ज़िन्दगी सुधरने में ।इसी कथन को सार्थक करने बच्चो को पढ़ने का कार्य किया सम्भ्रांत कुलीन परिवारों ने और शुरुआत में नैतिकता के पाठ रखे गए पुस्तको में जो कहते थे अंधे को सड़क पार कराओ भूखे को अपना भोजन दो इत्यादि ।मगर समय के साथ जब बराबरी का दौर दिखने लगा तो लगा कल तक जो हुज़ूर के समक्ष ऊची नज़र नहीं करता या जूती सर पे रख चलता वो जूती मार के हक मांगने लायक होने लगा ।
इसी सोच ने किताबो से मोरल हटा साइंस को बढ़ावा दिया ।
पैसे को सर्वोच्च स्थान मिला क्युकी पैसा ठाट बात के साथ रुतबा लता है और फिर चलन आया की जिसके पास पैसा है उस से सवाल नहीं पूछीयॆ
पैसे से हर काम होने लगा यकीनन हर गलत काम । स्कूल में पैसा दे प्रवेश ... शिक्षक को पैसा दे पास करना .... पैसा दे के नौकर खरीदना तो ठीक यहाँ नौकरी खरीदी जाने लगी .....जब बचपन से नोटों की कीमत इतनी ज्यादा देखि तो वही बटोरने की हवस पनपी ।
पैसा फेक तमाशा देख का नंगा नाच चल् पड़ा भरत की भारत भूमि पे
एक अदना सी गलती की पाठ्यक्रम से सामाजिक ज्ञान को निकल फेकना आज कितना भरी पड़ा
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