बड़े दिनों बाद अखबार मे आज एक खबर ने मुझे सोचने पर मजबूर कर दिया |खबर यह थी की कुछ अंग्रेजो ने एक रेली का आयोजन किया जहा ऑटोरिक्शा मे बैठ कर भ्रमण करना और यात्रा के दौरान रास्ते मे कुछ पैसे कमाना और फिर उन पैसो (७४०००रु ) और ऑटोरिक्शा को जरुरत मंदों को दान कर देना |
कुछ दिनों पूर्व राजस्थान मे कुछ १०० -२०० अँगरेज़ साइकिल रेली करते हुए दिल्ली से जोधपुर होते हुए उदैपुर के नज़दीक गोगुन्दा गाव मे पहुचे और वहा वे साइकिले गाववालो को दे वहा स्कूल की ईमारत के लिए दस लाख रूपये दान दे गए |
उपरोक्त दोनों उध्राहरण मे देने वालो ने किसी प्रकार का कोई प्रचार नहीं किया |दोनों मे कही भी धार्मिक भाव भी नहीं थे |किसी भी प्रकार का प्रचार का भी अभाव था | हम भारतीय भी संस्था दान मे है जैसे अजीम प्रेमजी आदि | भारत मे लाखो लोग मंदिरों मस्जिदों मे दान कर देगे पर भूखो नंगो को गाड़ी के करीब आता देख शीशे चढ़ा लेते है |यदि कोई समाज मे दान करता है तो उसे मंदिर बनाना ,ब्राह्मणों को भोजन करना ,आदि का चलन ज्यादा है क्योकि शुरू से ही यह देखा गया है की दान भी वाही करो जहा से फल ज्यादा से ज्यादा मिले चाहे पितरो को मिली या बरकत के रूप मे हमें | इस धारणा को बदलने मे वक़्त लगेगा |इसी कारण मंदिरों की भव्यता और विकास कार्यो की निम्नता हमारे देश मे देखि जा सकती है |
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