सूरमाओं, सतियों,और संतों की भूमि राजस्थान में क्रांतिकारी कवि केसरी सिंह बारहठ का जन्म २१ नवम्बर १८७२को शाहपुरा मेवाड़ के देवपुरा मे हुआ एक माह की आयु में ही उनकी माता का निधन हो गया, अतः
उनका लालन-पालन उनकी दादी-माँ ने किया | उनकी शिक्षा उदयपुर
में हुई |उन्होंने बांगला,मराठी,गुजराती आदि भाषाओँ के साथ इतिहास, दर्शन (भारतीय और यूरोपीय) मनोविज्ञान,खगोलशास्त्र,ज्योतिष का अध्ययन कर प्रमाणिक विद्वत्ता हासिल की | डिंगल-पिंगल भाषा की काव्य-सर्जना तो उनके जन्मजात चारण-संस्कारों में शामिल थी ही,बनारस से श्री गोपीनाथ जी नाम के पंडित को बुला कर इन्हें संस्कृत की शिक्षा भी दिलवाई गई|
केसरी सिंह बारहठ में देशभक्ति की भावना कूट-कूट कर भरी थी।अंग्रेजी हुकूमत उन्हें बिलकुल नहीं सुहाती थी। सन् 1891 में वे महाराणा फतह सिंह की सेवा में आये तभी से उन्होंने देखा कि पोलिटिकल एजेन्ट कर्नल माइल्स का मेवाड के राजकार्य में हस्तक्षेप निरन्तर बढता जा रहा था। ऐसे समय में केसरी सिंह बारहठ ने राजपूताना के क्षत्र्यि नरेशों व जागीरदारों को जो अपने को स्वतंत्र्ता का प्रहरी और मायड भूमि के रक्षक समझते थे तथा ऐशो आराम एवं भोग विलास में डूबे हुए थे, नींद से जगाने और कर्त्तव्य बोध का कार्य किया।केसरी सिंह जी ने समाज खास कर क्षत्रिय जाति को अशिक्षा के अंधकार से निकालने हेतु कई नई-नई योजनाएं बनाई ताकि राजस्थान भी शिक्षा के क्षेत्र में दूसरे प्रान्तों की बराबरी कर सके | उस समय राजस्थान के अजमेर के मेयो कालेज में राजाओं और राजकुमारों के लिए अंग्रेजों ने ऐसी शिक्षा प्रणाली लागू कर रखी थी जिस में ढल कर वे अपनी प्रजा और देश से कट कर अलग-थलग पड़ जाएँ | इसीलिये सन १९०४ में नेशनल कालेज कलकत्ता की तरह, जिसके प्रिंसिपल अरविन्द घोष थे, अजमेर में 'क्षत्रिय कालेज' स्थापित करने की योजना बनाई, जिस में राष्ट्रीय -भावना की शिक्षा भी दी जा सके | इस योजना में उनके साथ राजस्थान के कई प्रमुख बुद्धिजीवी साथ थे | इससे भी महत्वपूर्ण योजना राजस्थान के होनहार विद्यार्थियों को सस्ती तकनीकी शिक्षा के लिए सन १९०७-०८ में जापान भेजने की बनाई। क्यों कि उस सदी में जापान ही एकमात्र ऐसा देश था, जो रूस और यूरोपीय शक्तियों को टक्कर दे सकता थासन १९०३ में वायसराय लार्ड कर्जन द्वारा आहूत दिल्ली दरबार में शामिल होने से रोकने के लिए उन्होंने उदयपुर के महाराणा फतह सिंह को संबोधित करते हुए " चेतावनी रा चुंगटिया " नामक सोरठे लिखे, जो उनकी अंग्रेजों के विरूद्ध भावना की स्पष्ट अभिव्यक्ति थी | सशस्त्र क्रांति की तैयारी के लिएप्रथम विश्वयुद्ध (१९१४) के प्रारम्भ में ही वे इस कार्य में जुट गए; अपने दो रिवाल्वर क्रांतिकारियों को दिए और कारतूसों का एक पार्सल बनारस के क्रांतिकारियों को भेजा व रियासती और ब्रिटिश सेना के सैनिकों से संपर्क किया | एक गोपनीय रिपोर्ट में अंग्रेजसरकार ने कहा कि केसरी सिंह राजपूतरेजिमेंट से संपर्क करना चाह रहा था | उनका संपर्क बंगाल के विप्लव-दल से भी था और वे महर्षि श्री अरविन्द से बहुत पहले १९०३ में ही मिल चुके थे।केसरी सिंह पर ब्रिटिश सरकार ने प्यारेलाल नाम के एक साधु की हत्या और अंग्रेज हकूमत के खिलाफ बगावत व केन्द्रीय सरकार का तख्तापलट व ब्रिटिश सैनिकों की स्वामिभक्ति खंडित करने के षड़यंत्र रचने का संगीन आरोप लगा कर मुकदमा चलाया गया | इसकी जाँच के लिए मि. आर्मस्ट्रांग आई.पी.आई.जी., इंदौर को सौंपी गई, जिसने २ मार्च १९१४ को शाहपुरा पहुँच शाहपुरा के राजा नाहर सिंह के सहयोग से केसरी सिंह को गिरफ्तार कर लिया | इस मुकदमे में स्पेशल जज ने केसरी सिंह को २० वर्ष की सख्त आजन्म कैद की सजा सुनाई और राजस्थान से दूर हजारी बाग़ केन्द्रीय जेल बिहार भेज दिया गया | जेल में उन्हें पहले चक्की पीसने का कार्य सौपा गया जहाँ वे दाल व अनाज के दानों से क ख ग आदि अक्षर बना कर अनपढ़ कैदियों को अक्षर-ज्ञान देते और अनाज के दानों से ही जमीन पर भारत का नक्शा बना कर कैदियों को देश के प्रान्तों का ज्ञान भी कराते थे | केसरी सिंह का नाम उस समय कितना प्रसिद्ध था उसका अंदाजा इस बात से लगाया जा सकता है कि उस समय श्रेष्ठ नेता लोकमान्य तिलक ने अमृतसर कांग्रेस अधिवेशन में केसरी सिंह को जेल से छुडाने का प्रस्ताव पेश किया था|
हजारी बाग़ जेल से छूटने के बाद अप्रेल १९२० में केसरी सिंह ने राजपुताना के एजेंट गवर्नर जनरल (आबू ) को एक बहुत सारगर्भित पत्र लिखा जिस में राजस्थान और भारत की रियासतों में उतरदायी शासन-पद्धति कायम करने के लिए सूत्र रूप से एक योजना पेश की | इसमें “राजस्थान महासभा” के गठन का सुझाव था जिस में दो सदन (प्रथम) भूस्वामी प्रतिनिधि मंडल (जिस में छोटे बड़े उमराव,जागीरदार) और “द्वितीय सदन” सार्वजनिक प्रतिनिधि परिषद् (जिसमें श्रमजीवी,कृषक,व्यापारी ) रखने का प्रस्ताव था |
सन १९२०-२१ में सेठ जमनालाल बजाज द्वारा आमंत्रित करने पर केसरी सिंह जी सपरिवार वर्धा चले गए, जहाँ विजय सिंह ‘पथिक’ जैसे जनसेवक पहले से ही मौजूद थे | वर्धा में उनके नाम से ” राजस्थान केसरी ” साप्ताहिक शुरू किया गया, जिसके संपादक विजय सिंह ‘पथिक’ थे | वर्धा में ही केसरी सिंह का महात्मा गाँधी से घनिष्ठ संपर्क हुआ | उनके मित्रों में डा. भगवानदास (पहले ‘भारतरत्न’), राजर्षि बाबू पुरुषोत्तम दास टंडन,गणेश शंकर ‘विद्यार्थी’, चंद्रधर शर्मा ‘गुलेरी’, माखनलाल चतुर्वेदी राव गोपाल सिंह खरवा, अर्जुनलाल सेठी जैसे स्वतंत्रता के पुजारी शामिल थे | देश की स्वतंत्रता के लिए अपना सब कुछ होम कर देने वाले क्रान्तिकारी कवि केसरी सिंह ने १४ अगस्त १९४१ को ” हरी ॐ तत् सत् ” के उच्चारण के साथ अंतिम साँस ली |
प्रताप सिंह बारहठ भी अपने पिता केसरी सिंह बारहठ के नक़्शे कदम पर चलते हुए क्रन्तिकारी बन गए. आपका जन्म २५ मई १८९३ को शाहपुरा में हुआ. आप रास बिहारी बोस के संपर्क में आये और अपना सर्वस्व मत्री भूमि के सेवा में अर्पित कर दिया.आपके चाचा जोरावर सिंह बारहठ पहले से ही इस ग्रुप में शामिल थे. ३ दिसम्बर १९१२ को लोर्ड हार्डिंग भारत के तत्कालीन विसरॉय पर बम डालने वालों में आप शामिल थे. बनारस केस में आपको ५ वर्ष सश्रम जेल की सजा हुई. आप पर इतने जुल्म किये गए की आपका जेल में हे ७ मई १९१७ को स्वर्गवास हो गया.
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