आम तौर पे चावल को पानी में कम मसालों के साथ पकाने को खिचड़ी कहते है एक बार यदि खिचड़ी बन गई तो फिर उसमे कहा चावल कहा मसाला कोई नहीं बता पता है |आज के युग को खिचड़ी युग कहना गलत नहीं होगा क्युकी हर कोई अपनी अपनी सामग्री से खिचड़ी बनाने में जुटा है |फिल्मे खिचड़ी ,भाषा खिचड़ी ,पढाई खिचड़ी लगता है ये युग खिचड़ी है |
भूख मिटने के सिवाय ज्ञान बाटने का भरपूर श्रेय भी इस अदना से भोजन को मिला है | बीरबल की खिचड़ी तो नहीं पकने के लिए जग जाहिर है गोया पेड़ पर लटका के कैसे पकेगी ! आज के युग में भी स्वामी विवेकानंद जी ने खेतड़ी नरेश को खिचड़ी बीच से नहीं किनारे से खाने का अभिप्राय काम एक छोर से शुरू करना बता खिचड़ी को ज्ञान से जोड़ा |
अब आज की ही बात लो गरीबी की मार सह रहे ग्रामीण के बच्चे को सरकार भी खिचड़ी का लालच दे विद्यालय आने को ललचा रही है भरपेट भोजन तो नसीब होगा यही सोच कर जब टखनो तक लटकी भूरी निक्कर और फटा नीला बुस्शर्ट पहने बच्चा कक्षा में अपने गाव के जागीरदार के खेत की ककड़ी तरबूज चुरा मास्टर को देता है और कक्षा का झाड़ू लगा टाट पर बैठता है तो उस कीड़े वाली खिचड़ी को भी पाच पकवान से कमतर नहीं आकता जो सप्थान्त से सोमवार तक उसके शरीर को ऊर्जा प्रदान करेगे जिस से वो बालक कुछ मजदूरी कर अपने परिवार का पेट भरने में सहायक हो |
मुझे लगता है मेरी यह शब्दों की खिचड़ी आज कुछ लोगो को तीखी लगे और सोचने पर मजबूर करे ........
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