Tuesday, November 15, 2011

वो गाव मेरा है

   
गाव का शांत, स्वच्छ, प्रकृति के नज़दीक जीवन जीने का अवसर तलाशते कई वर्ष बीत गए .हमेशा किसी जरूरी काम मे फसकर शहर नहीं छोड़ पाते है इस बार अचानक सप्ताहांत पर निकल पड़ा | रास्ते मे चाय नाश्ता करते    
हुए पुराने दिनों को याद कर भुआ के बच्चो को न्योता दिया पर सभी व्यस्तता का हवाला दे अगली बार के लिए टाल 
 गए |
शाम ५ बजे गाव के नजदीकी कसबे से मॉस आदि लेकर रवाना हुआ और सूर्यास्त के समय तक पहुच पाया | भला हो
राजीव  जी का जो गाव तक पक्की सड़क बनगई वर्ना सुबह ८ बजे निकल कर रात १० बजे पहुच पाते थे बचपन मे,
गर्मी व् दीवालियो की छुट्टियो मे जब सभी भाई बांध जमा होते थे |मेरे इस छोटे से गाँव का कोई जवान संतरे निम्बू की 
काश्त कर रातो रात 
अमीर होना चाहता है तो कोई मजदूरी करने शेहर को चला गया | यहाँ धुम्रपान  की अधिकता गरीबी लकिन स्वाभिमानी 
ग्रामवासी मेरे अपने होने का अहम् मुझे याद दिलाता है बचपन का हर वह लम्हा जो दाता सा  भाबा सा के साथ यहाँ बिताया |
 |यहाँ के ग्रामीण दुनिया से जुड़े होने का सबूत राजनेतिक चर्चा ओबामा से भवरी तक और उनपर  तल्क्ह टिप्पणिया कर के देते है जिससे 
आनंद की अनुभूति होती है |
 भोजन के पश्च्यात टीवी भला हो डी टी एच का चैनल बदलते हुए कब नींद की आगोश में चला गया पता ही नहीं चला |
बाहर सौर उर्जा जनित लाइट राहों में प्रकाश फैला रही है |यदा कदा मोटरसाईकिल का होर्न सुने पड़ रहा है ...


भोर भये गेयान  के पाछे........सुबह ६ बजे गायो के रंभाने और मंदिर की घंटियों से निद्रा भंग होना सौभाग्य ही प्रतीत 
होता है अन्यथा अलार्म ! कई दिनों पश्च्यात सूर्योदय का आनंद लिया चिडियों की चहचाहट, मोर का नाचना ,
कबूतर की गुटुर्गू असली प्रकृति का आनंद | दूध का प्याला शहद डाल कर अर्दली लाया उसके पश्चात नहाने हेतु 
कूए पर गया |चमड़े के चड़स और बैलो की जगह पम्पसेट व् मशीनों ने लेली आज सिचाई के साधन फव्वारों और ड्रिप 
प्रणाली ने लेली किसान पानी की कीमत समझ गया | सरसौ की पिलाई का वक़्त है ,गेहू बीजने की तय्यारी ..चने 
के पौधे दिखने लगे है खेत मे ..किसान खुश है ,घडी घडी हिसाब लगता है बेटी और उसकी माँ के कंगन के बारे में... 
फिर दुखी मन से उरद  को देखता है घर के कोठार मे पड़ी उरद जिस से दाल मखानी बनती है का भाव बहुत कम 
होने की वजह से बेच नहीं पारहा |जिन किसानो के पास पैसो की किल्लत थी या उधारी थी उन्होंने तो कम पैसो 
मे ही बेच दी पर जो रोक सकते थे वो लेकर बैठे है |सरकार ने गेहू का समर्थन मूल्य बी घटा दिया जिससे मायूसी 
साफ़ दिख रही है |


गाव का किसान आज भी पास से देखने पर लाचार ,बेबस दीखता है पर निराश वो आज भी नहीं है |एक दिन मेहनत
का फल जरूर मिलेगा इसी आस मे गाव आस की डोर थामे है | स्फूर्ति और जोश से फिर दिन की शुरुआत को तय्यार|






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