Thursday, December 22, 2011

शिल्प ग्राम उत्सव

  

कल माननीय राज्यपाल साहब के कर कमलो से पश्चिम क्षेत्र सांस्कृतिक केंद्र के शिल्प ग्राम उदैपुर का  रजत जयंती वर्ष के दस दिनों तक चलने वाले उत्सव का रंगारंग आगाज़ हुआ |मरू भूमि के गाजी खान मंगनियार ने समां बाँध दिया ,गोटीपुआ नृत्य उड़ीसा ,महाराष्ट्र का शेर व् उत्तरप्रदेश का मयूर नृत्य  ख़ास थे |हरियाणवी घूमर ने भी सभी का मन मोहा |                                                                                 

 

देश की लोक कला, अनूठी शिल्प परंपरा के प्रोत्साहन तथा कलाकारों व शिल्पकारों को कला प्रदर्शन के लिये मंच उपलब्ध करवाने तथा शिल्प साधकों को शिल्प उत्पादों के विपणन के लिये बाजार उपलब्ध करवाने के उद्देश्य से केन्द्र द्वारा उत्सव का आयोजन प्रतिवर्ष होता  है। दस दिवसीय उत्सव के दौरान अपरान्ह 12.00 बजे से हाट बाजार प्रारम्भ होगा जहाँ आगंतुकों को विभिन्न राज्यों के शिल्प उत्पाद देखने व खरीदने का अवसर मिलेगा। उत्सव के दौरान रोजाना शाम 6 बजे से मुक्ताकाशी रंगमंच ‘‘कलांगन’’ पर लोक कलाकारों द्वारा रंगारंग कार्यक्रम प्रस्तुत किया जायेगा।
हस्त शिल्प के बेमिसाल नमूने राजस्थान की कठपुतलियो से ले कर ओड़िसा के सीपिया व् आयल पेंटिंग अनायास ही मंत्रमुग्ध करती है | उत्सव में कालबेलिया, सिद्दी धमाल, गोवा का समई नृत्य, असम का कलात्मक बिहू नृत्य, तीजन बाई की पंडवाणी, पश्चिम बंगाल का लोकप्रिय नृत्य छाऊ,पंजाब का भांगड़ा, मणिपुर की युद्ध कला को प्रदर्शित करता थांग, मणिपुर का पुंग ढोल चोलम की प्रस्तुति, बड़े बच्चों को आकर्षित करने वाला सिक्किम का सिंगी छम, गोवा की महिलाओं द्वारा किया जाने वाला देखणी नृत्य आदि ख्यातनाम रंगारंग प्रस्तुतियांदेखने को मिलेंगी|इन दस दिनों मे हम कई बार शिल्पग्राम की सैर करेंगे, मेरा पसंदीदा गन्ने का रस जो तेल की घाणी से बैल निकालते है सिर्फ इन्ही दस दिनों तक मिलता है |पूरे देश से लोक नृतक ,लोक कलाकार ,खान पान एक जगह पर मिलना सौभाग्य ही है |

Wednesday, December 21, 2011

All b'cos of ignorance

India and Russia have been great friends as nation states for six decades if the Soviet period is taken into account, but contacts between the two at the social level, and at the level of individuals, has been virtually nonexistent, although in both countries there has traditionally been substantial goodwill for one another. 


The recent controversy over the status of the Bhagavad Gita or the Gita, as the famous 3,000-year-old text is commonly known, as revealed from details of a case filed in a court at Tomsk in Siberia, doubtless owes much to this gap. It is a pity, nevertheless, that the Russian authorities are yet to squelch the problem.


During the Communist rule, the International Society for Krishna Consciousness (Iskcon) — which spreads the message of Lord Krishna’s teaching to Arjuna of not falling prey to illusory earthly bonds while performing one’s duty, the essence of the Gita — had come on the radar of the authorities in Moscow. The anti-religious state questioned all this on first principles, but, though there was also the underlying anxiety that no community organisation should emerge which furthered a cause other than the officially sanctioned version of Communism. Reportedly, Krishna’s message had slowly begun to attract adherents. In Russia, after the demise of the Communist state, it won’t be the authorities who would worry about the Gita but notables or followers of the local church, who might perceive competition.


It is laughable that the Gita should be challenged in a Siberian court as “extremist” literature. The truth is that it is not only a great text sacred to the Hindus, but also widely viewed in the world as a marvel of world literature and a heritage of humankind.

Sunday, December 18, 2011

मलमल के कुर्ते पे छीटे लाल लाल ...

"पान खाय सय्या हमारो ..या ..खाई के पान बनारस वाला ........" उस ज़माने और आज मे बहुत फर्क आ गया लगता है | हम उत्तर भारतीय एक ज़माने में भरपूर भोजन के बाद पान का लुफ्त लेना नहीं चूकते कहा जाता था की पान पाचन में सहायक है | कौन सा पत्ता‍ लेंगे ? यथा चालानी, कलकतिया, बनारसी , देशी या फिर मीठा पत्ता .... आज के पान के हिसाब को मेरे खाते में डाल दीजिए और पीछे का हिसाब भी जोड़ दीजिएगा... आज इस तरह का वार्तालाप मनो  ख़त्म सा होचला है |
पान या तांबुल का प्रयोग भारत में कब से हो रहा है नहीं पता, पर प्राचीन काल से ही इसका उल्लेख सामने आता रहा है। इसने वह स्थान प्राप्त किया हुआ है कि पूजा अर्चना में इसे भगवान को भी अर्पित किया जाता है। अपने गुणों की खातिर इसे हमारी दिनचर्या में भी जगह मिली हुई है। आयुर्वेद में भी इसका उपयोग लाभकारी बताया गया है।पान का पूरा लाभ लेने के लिये उसमें जरा सी मात्रा में चूना, कत्था, जायफल, लौंग, ईलायची तथा पक्की सुपारी ड़ाल उपयोग करना चाहिये। कच्ची सुपारी का सेवन हानीकरक माना जाता है।



 
पान के सेवन से मुंह का स्वाद ठीक रहता है, जीभ साफ रहती है, गले के रोगों में भी फायदा होता है तथा चूने के रूप में शरीर को कैल्शियम की प्राप्ति हो जाती है। इसका उपयोग खाना खाने के बाद ही फायदेमंद रहता है।


पर आज  पान' की लाली फीकी हो चली है। लबों पर लाली के लिए अब महिलाएं पहले की तरह पान खाना पसंद नहीं करतीं बल्कि सौन्दर्य प्रसाधनों का उपयोग करने लगी हैं। सो, पान का चलन कम हुआ है। पान के रसिया कम हो चले है और थैली बंद गुटखो ने धीरे धीरे  उनकी जगह ले ली है जो पान से ज्यादा घातक और नुकसानदेह है  लोग यहाँ तक कहते है की आज के  मिलावटी पान मसाले कई गुना ज्यादा घातक हैं। इन्होंने पान खाने वालों को सलाह दी है कि वे प्रतिष्ठित दुकानों से ही खरीद कर पान मसालों का सेवन करें। दुकानों से मंगाये गए पान के बीड़े से यथा संभव परहेज करना चाहिए।गांवों के किसान बढ़-चढ़कर पान की खेती करते थे पर अब पाला के साथ ही सरकारी अनदेखी के कारण कृषक इससे मुंह मोड़ने लगे हैं।पान के पत्तों की बढ़ती कीमत के कारण लोग गुटखा खाना ज्यादा पसंद करते हैं |

Saturday, December 17, 2011

किसान

किसान जो मेहनत का पर्याय है को आज उस देश जहा आबादी मे बहुतायत उसी की है बेसहारा लाचार  और मजबूरी का जीवन जीना पड रहा है |पंजाब जो कृषि बहुल सरसब्ज़  इलाका है वहा आलू सडको पर बिखरे है तो महाराष्ट्र मे हर साल दो तीन कपास कृषको की आत्महत्या |पूरे देश मे किसान अपने अस्तित्व की लड़ाई लड़ रहा है हरित क्रांति के झंडाबरदार राज्य हरियाणा और पंजाब के किसान भी हताश हैं। आंध्रप्रदेश में किसानों की दयनीय स्थिति किसी से छिपी नहीं है। आत्महत्या की काली साया बांदा, हमीरपुर तक पहुंच गई है। उत्तरप्रदेश, बिहार के किसानों में आत्महत्या की प्रवृत्ति इसलिए जोर नहीं पकड़ रही है क्योंकि, वहां के छोटे-बड़े सभी किसानों ने शहरों में जाकर वैकल्पिक आय के साधन ढूंढ लिए हैं। लेकिन जहां भी वैकल्पिक आय नहीं है, वहां किसान आत्महत्या के कगार पर हैं।कभी सोने की चिड़िया कही जाने वाली भारत की सामर्थ्य और समृद्धि का आधार स्तम्भ यहां की कृषि व्यवस्था थी। कृषि, गौपालन और वाणिज्य के त्रिकोण के कारण भारत में कभी दूध-दही की नदियां बहा करती थीं।और आज ?


वर्षों से विपरीत परिस्थितियों को झेल रहे किसान जहां एक ओर थक रहे हैं, वहीं उनके लिए कठिनाइयां और बढ़ती जा रही हैं।सन १९७५ मे मेरे पिताजी ने पढाई के पश्च्यात गाव का रुख किया |टमाटर की फसल करी मेहनत से अच्छी पैदा के बावजूद कीमत व् बाज़ार न मिलने से कई ट्रोली टमाटर सड़क किनारे फैक कर घर आना पड़ा |फिर तीन साल अच्छी बरसतो का इन्तजार किया और कपास की खेती करी बीज चित्तोड़गढ़ से लिया और किताबो व् चरस, आठ जोड़ी बैलो और दस कामगारों की मदद से दिन रात मेहनत करी ...पत्तो के दोनों मे बीज उगा कपास की नर्सरी तैयार की और रस्सी से निशानदेही कर चार फिट की दूरी पर गड्ढे खोद  के कपास उगाया | जब पौधे मे दो दो पत्ती उग आई तो कीड़ा लग गया |दावा हेतु पिताजी जब भीलवाडा के डिप्टी डिरेक्टर कृषि से मिले तो उनका जवाब था हमें जानकारी नहीं है जिले मे किसीने यह बीज नहीं बोया और मैंने तो देखा ही आज है |तब मेरे किसान पिताजी चित्तोडगढ पहुचे और दवा के लिए दुकानदार से मिले उसने बम्बई से मंगवाई |कई परेशानियों और कड़ी मेहनत के बाद बहुत शानदार कपास आया |जब उसे बेचने केकड़ी मंडी पहुचे तो व्यापारी उस कपास को देख कर दंग रह गए पर यह कहते हुए खरीदने से मना कर दिया की इसका जोड़ का कपास नहीं है हम नहीं लेसकते |हिम्मत कर के पिताजी ट्रेक्टर में कपास के साथ  विजयनगर मंडी पहुचे और बहुत कम मूल्य पर बेच कर घर पहुचे |आज थक हार के उन्होंने गाव छोड़ कर शहर का रुख कर लिया पर मन आज भी उन्ही खेतो कुओ मे अटका है |


गाव मे जब किसान का बैल मर जाता था  तो लोग मातमपुर्सी के लिए जाते थे |बैल कमाऊ पूत की तरह होता था और आज भी कई जगह किसान लाचार और बेबस है पर थका नहीं मेहनत मे किसान का कोई सानी नहीं कभी जमीन से तो कभी सरकार से तो कभी व्यापारी से और अक्सर भगवान् से परेशान होने के बाद भी फिर खड़ा हो अगली फसल की तयारी मे जुट जाता है |


किसान पूरे देश में अपने अस्तित्व की लड़ाई लड़ रहे हैं |विगत दस वर्षों से कृषि उपज लगभग स्थिर बने हुए हैं। 65 प्रतिशत किसानों का सकल घरेलू उत्पाद में  केवल 24 प्रतिशत हिस्सा रह गया है। उद्योग क्षेत्र में तो कर्जमाफी के नए-नए उपचार हुए पर कृषि के बारे में बहाने बनाए गए। कोढ़ में खाज की स्थिति तब हो गई जब विश्व व्यापार संगठन की शह पर सरकारों ने अपनी जिम्मेदारी से मुंह मोड़ लिया। आज विदेशी शोषकों की एक नई फौज खड़ी हो गई है। गावों का खेती-किसानी से नाता टूट रहा है। जमीन, जल, जंगल, जगत, जानवर बेजान होते जा रहे हैं।



Friday, December 16, 2011

स्वाभिमान

एक बार मेवाड़ राजदरबार से एक चारण योद्धा  अकबर के दरबार में पहुंचा। उसके सिर पर पगड़ी थी। अकबर का अभिवादन करने से पहले उसने अपनी पगड़ी उतार दी। पगड़ी उतार कर अभिवादन करने से अकबर को क्रोध आ गया लेकिन अपने को नियंत्रित करते हुए उन्होंने कहा, ' चारण होने के कारण तुम्हें राजदरबार के नियम-कायदे की समझ तो होगी ही। तुम्हें पता होगा कि एक चारण को नंगे सिर किसी बादशाह का अभिवादन नहीं करना चाहिए। फिर तुमने ऐसा क्यों किया?' 

इस पर चारण सरदार ने जवाब दिया , 'जहांपनाह, गुस्ताखी माफ हो। मुझे दरबार के इस नियम का ज्ञान है कि एक चारण को राजदरबार में बादशाह का अभिवादन करते समय पगड़ी नहीं उतारनी चाहिए। लेकिन मेरे सिर पर जो पगड़ी है, वह कोई कपड़े की मामूली पगड़ी नहीं है।' अकबर ने पूछा 'क्या इसमें हीरे-जवाहरात जड़े हैं कि पगड़ी झुकाते ही वे छिटक कर गुम हो जाएंगे।' 

चारण  ने कहा, 'हुजूर, इस पगड़ी की कीमत हीरे मोतियों से मत आंकिए। यह अमूल्य है।' अकबर ने क्रोध में कहा, 'साफ साफ कहो, तुमने यह गुस्ताखी क्यों की।' चारण योद्धा ने कहा, 'एक बार मेवाड़ के महाराणा प्रताप ने घास की रोटी खाने पर मजबूर होते हुए भी प्रसन्न होकर मुझे यह पगड़ी भेंट की थी और कहा था कि इसकी लाज रखना। जब जंगलों की खाक छानने और घास की रोटियां खाने के बावजूद महाराणा आप के सामने कभी नतमस्तक नहीं हुए तो उनके द्वारा दी गई पगड़ी को आप के सामने झुकाने का मुझे कोई अधिकार नहीं है। यदि मैं ऐसा करता तो राणा के स्वाभिमान को चोट पहुंचती। एक चारण अपनी जान तो दे सकता है लेकिन ऐसा कुछ नहीं कर सकता जिससे कि उसके स्वामी के स्वाभिमान को ठेस पहुंचे।' चारण की बात सुन कर अकबर ने कहा, 'मैं तुम्हारे स्वाभिमान को देख कर बहुत खुश हूं।' 

Thursday, December 15, 2011

Price for progress.




After a bad day at work, Manorama Begum can hardly keep herself from 


vomiting. After a good day, she is merely disinclined to eat for a few hours, 


until the stench has receded from her nostrils and her fingernails are scrubbed 


cleanAs Begum began to root through refuse, searching for bottles, old light 


bulbs, and anything else that might be recyclable, someone punched the 65-


year-old in the back of the head. She collapsed. Her attacker continued to 


punch and kick her..Again eighteen-year-old Naina, a rag-picker collects waste 


for a living. 


The show begins at night. After the sun is swallowed by the smog and neon 


lights wash the city in yellow, Rahul and his gang emerge from under the 


flyover. They all look similar - grubby feet, frayed rags, scarred faces, red eyes 


and brassy hair. They are all under 11. Walking with the swagger of his 


favourite filmstar, the puny urchin produces a cigarette from his pocket, lights 


it and blows the smoke into the faces of six other kids who beg for a drag. But 


Rahul is high: one moment he is Dabangg; another, he is Romeo the kutta. 


Then he offers the fag to his buddies, but at a price. He punches one, yanks 


out Rs 5 from another's pocket, and then grabs Guddi, the only girl in the pack. 


She screams and giggles as he pulls her towards a dark corner. Then a boy 


shouts police' and the group vanishes into the dark garbage dump they call 


home.

There are some 300 families in the area who do the same to make ends meet, 


wearing T-shirts with the line "Your waste is our business," .Looking after 


rubbish, anywhere in the world, is not dignifiedThe very fact that we should 


acknowledge that we need to look after their health is a tremendous 


acknowledgement of their dignity.There are the hard-up families, who save 


their own plastic milk cartons to sell to passing dealers for a few extra rupees 


to supplement the household budget.

In Mumbai, garbage dumping grounds are taking their toll on residents who 

live close by. A survey conducted by the NGO Nirmaya Health Foundation has

 found that close to 70 per cent of nearly 1,400 children, near the dumping 

ground, suffer from respiratory tract infection and chronic skin diseases. A 

majority of those affected, 882 rag- pickers, are directly exposed to the toxic 

waste.a beautiful place, but because of dumping, has become dirty and 

unhygienic. The persistent bad odour has led to various health problems such 

as suffocation. The system here is informal yet highly organized. Its capacity 

to recycle plastics and paper is efficient beyond the dreams of even 

progressive, recycling nations in the West.



Many here say that while the current waste disposal system might provide the 


1050,000-some ragpickers with a meagre livelihood.If these ragpickers are 


squeezed out, we'll see them cutting back on what they eat, they'll stop 


feeding their children milk, and we'll see more women entering the sex trade. 


Is this progress?

Wednesday, December 14, 2011

अर्थ

मुझ जैसे स्‍कूली बच्‍चों को छुटिटयों के बाद स्‍कूल जाना सबसे ज्‍यादा डरावना लगता होगा क्यूकि  हॉलिडे होमवर्क कल करेंगे करते करते पूरी छुटिटयां मौज मस्‍ती में गुजारी हों | ठीक इसीतरह आज भी कल करेंगे कल करेंगे कहते कहते अपनी जिन्‍दगी गंवा दूगा शायद , अंतिम सांस अफसोस के साथ छोड़नि पड़े की , काश! कुछ वक्‍त और मिल जाता। आज सुबह जब मैं अपने घर में  टहल रहा था तो ये विचार  अचानक दिमाग में आ टपका और इस विचार से पहले मेरे दाता सा द्वारा सुनाई एक कहानी याद आई जो स्कूली बच्चो या मानव जीवन पर सही सही टिप्पणी है 


खेतों में एक बिना छत वाला कमरा था, वहां पर एक अमलची  (नशेड़ी) रहता था, और सर्दी के दिन थे। जब रात के समय उसको सर्दी लगती तो वह कहता, सूर्य उगते ही इस कमरे पर छत डाल दूंगा, ताकि अगली रात को सर्दी मेरी नींद में रुकावट न डाल सके, मगर सुबह होते ही उस अमलची  के शब्‍द बदल जाते, कितनी प्‍यारी धूप है, मजा आ गया और वह भूल जाता जो बात उसने रात को ठिठुरते हुए कही थी। इस तरह सिलसिला चलता रहा, अमलची  के संवाद मौसम के साथ बदलते रहे, और अंत में सर्दी खत्‍म होने से पहले अमलची  खत्‍म हो गया। 


कहानी ख़त्म और हम खेलने मे व्यस्त,किसी ने सार के बारे मे नहीं सोचा ... समय निकलता गया और आज जीवन ने खुद ब खुद उस कहानी का अर्थ समझा दिया |

Tuesday, December 13, 2011

जाबांज को सम्मान

महज 11 साल की मलाला उन पीड़ित लड़कियों में शामिल थी, जो तालिबान के फरमान के कारण लंबे समय तक स्कूल जाने से महरूम रह गई। दो साल पहले स्वात घाटी में तालिबान ने लड़कियों के स्कूल जाने पर पाबंदी का तुगलकी फरमान जारी किया था। इस जाबांज लड़की ने तालिबान के तुगलकी फरमानों से जुड़ी दर्दनाक दास्तानों को अपनी कलम के जरिए लोगों के सामने लाने का काम किया है | मलाला को अंतरराष्ट्रीय  सम्मान के लिए नामांकित किया गया |

हेग में शूरवीरों के हॉल में, 400 से अधिक राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय मेहमानों को इस विशेष लड़की का सम्मान इकट्ठा. सरकार, उद्योग और गैर सरकारी संगठनों के प्रतिनिधियों की एक संख्या के समारोह में बोल रहे थे,"आशा है हमें क्या जा रहा रखता है" चाएली अपने भाषण में कहा. "यह क्या हमें जीवन हम लायक के लिए प्रयास रहता है . मैं खुद के लिए उम्मीद है, लेकिन मैं भी विकलांग के साथ अन्य सभी बच्चों के लिए आशा है. मुझे आशा है कि एक क्षमता कार्यकर्ता के रूप में अपने कार्यों दुनिया अधिक स्वीकार करने और सभी लोगों के लिए और अधिक मिलनसार और विकलांग के साथ सिर्फ लोगों को नहीं छोड़ देंगे, क्योंकि हम सब अलग अलग हैं और हम सब की जरूरत है परवाह किए बिना एक विकलांगता है या नहीं होने का स्वीकार किया जाना है. "
9 वर्ष की आयु में, चाएली और उसके दोस्तों और बहन चाएली के लिए एक मोटर चालित  व्हीलचेयर के लिए पैसे जुटाने के लिए एक परियोजना शुरू कर दिया. सिर्फ सात हफ्तों में वे अधिक से अधिक पर्याप्त पैसा उठाया, तो चाएली अधिक विकलांग बच्चों की मदद करने का फैसला किया. इस परियोजना चाएली अभियान, एक पेशेवर संगठन है कि सालाना उपकरण, भौतिक चिकित्सा और जो विकलांग बच्चों के अधिकारों और स्वीकृति के बचाव के साथ दक्षिण अफ्रीका में विकलांग के साथ 3000 से अधिक बच्चों को मदद मिलती है बन गया है. चाएली अन्य बच्चों को प्रेरित करने के लिए परियोजनाओं को शुरू करने और उस के लिए वह एक राजदूत प्रोग्राम विकसित किया है.जो एक मिसाल है |
आशा है बच्चों और उनके अधिकारों के दुरुपयोग खत्म हो .बहादुरी ,हिम्मत और वतन के प्रति प्रेम की भावना का बीज बोसके यह एक खुशी की बात है.

Monday, December 12, 2011

प्लेटफॉर्म नं चार

भीड़भाड़, शोरगुल, मुसाफिरों की आपाधापी और गाड़ियों की आवाजाही, किसी भी रेल्वे स्टेशन की सामान्य सी बात है, लेकिन इसके साथ एक बात और भी सामान्य है- यहां रहने, पलने और बढ़ने वाले छोटे-छोटे मासूमों का हुजूम। लाखों लोगों की भीड़, पुलिस प्रशासन की तथाकथित मुस्तैदी, ढेरों सरकारी योजनाएं, कानून और गैर सरकारी संस्थाओं के प्रयास इन बच्चों तक आते-आते मानों थम से जाते हैं। रेल्वे प्लेटफॉर्म ही इन बच्चों का घर संसार और पाठशाला हैं।

इनमें से कुछ बच्चे घर-परिवार से रूठकर भटकते हुए यहां पहुंच गए, तो कुछ ऐसे है कि इन्हें खुद भी नहीं पता कि कब और कैसे यहां आ गए। कुछ ने जन्म ही प्लेटफॉर्म पर लिया। कुल मिलाकर अब इन तमाम बच्चों का आसरा है- रेल्वे स्टेशन। स्कूल जाने या अच्छे संस्कार सीखने की उम्र में ये सीखते हैं रोजी-रोटी ती तलाश, चोरी, मारपीट, गाली-गलौज, जेब काटने के गुर और नशे की आदत। इनकी मासूमियत का फायदा उठाते हैं यहां जमे हुए शातिर अपराधी जो इनसे भीख मंगवाने, चोरी करवाने से लेकर नशीले पदार्थों की तस्करी भी करवाते हैं। यहां घूमने वाली लड़कियों की हालत तो और भी बदतर है।

रेल्वे स्टेशन पर रहने वाली लड़कियो की हालत तो और भी दयनीय है। छोटी उम्र में ही ये दैहिक शोषण का शिकार हो जाती है। खेल-खिलौने खेलने की उम्र में मां तक बन जाती है ये लाड़लियां। तेरह साल की चंदा का उसका सौतेला भाई मालगाड़ी के ड्राइवर के सुपुर्द कर गया था जहां लगातार उसका शोषण होता रहा। पंद्रह साल की शाहिदा को तो पता ही नहीं है कि वह कब और कैसे यहां पहुंच गई, होश संभालते ही उसने स्वयं को स्टेशन में पाया। स्टेशन में भीख मांगने वाली रशिदा ने उसका नाम रख दिया शाहिदा। करीब तीन महीने पहले ही उसने एक बच्चे को जन्म दिया था जिसे उसने दो हजार रुपए में एक नि:संतान दंपत्ति को बेच दिया। ढीढता से मुस्कराते हुए वह कहती है कि बच्चे के झमेले में कौन पड़ता, वैसे भी वह यहां रहता तो खराब रास्ते में ही जाता। अब कम से कम वह पढ़-लिखकर अच्छा इंसान हो बनेगा।

नशे का सामान बेचते-बेचते अधिकांश मासूम कब इसकी गिरफ्त में आ जाते है, इस बात का पता उन्हें खुद भी नहीं चलता है। तम्बाखू, गुटका से शुरू हुई यह लत धीरे-धीरे बीड़ी, सिगरेट, गांजे से होती हुई ब्राउन शुगर तक पहुंच जाती है, लेकिन रेल्वे स्टेशन में अधिकांश बच्चे टाइपिंग में इस्तेमाल किए जाने वाले व्हाइटनर और पंचर जोड़ने वाले सॉल्यूशन का नशा अधिक करते है। तेरह साल का रहीम भी इसी काम में माहिर है। एक फेरी के उसे मिलते है, 20 रुपए और थोड़ा सा गांजा, लेकिन गांजे की बजाय वाइटनर का नशा उसे अधिक रास आता है।

 आश्चर्य की बात तो यह है कि पुलिस इस बात की पुष्टि भी नहीं करती, तमाम दावों को खोखला साबित करते है  । रेल्वे पुलिस के  अधिकारी का कहना है कि  हमारे पास अब तक इस बात की कोई शिकायत नहीं आई है। सोचिये और रेल मे बैठ जाइये दिल कठोर करके या यह कह कर की मै अकेला क्या कर सकता हू ?

Sunday, December 11, 2011

Anna ki aandhi ! (Bhag @2)

Veteran social activist Anna Hazare’s daylong protest fast at the Jantar Mantar in New Delhi galvanised hundreds across the country, as his supporters warned the Congress-led United Progressive Alliance (UPA) Government at the Centre of a prolonged agitation if key demands were not included in the Lokpal Bill. 


Hazare’s supporters gathered in large numbers  to demand the inclusion of three key demands outlined in the Bill. A supporter of Hazare , said the Prime Minister, Dr. Manmohan Singh, had promised to include the demands put forward by Team Anna, but the government had backtracked on its position.Supporter said that he would support Hazare in a prolonged agitation against the Congress-led UPA Government if the demands were still excluded.

“The three key demands that were remaining in the end, our Prime Minister (Manmohan Singh) had assured that they will be included and had said that Annaji should break his fast. Now, again they are not agreeing to these demands and the government has backtracked again. “It is our one-day demonstration, a waning demonstration, so that the government agrees to our demands, but if they do not agree then we will sit on an indefinite hunger strike again from December 27 and we will hold a stronger anti-corruption movement as compared to the last time,” he added.

Similar scenes were witnessed in Uttar Pradesh’s Kanpur city, where Hazare’s supporters wearing 'I am Anna' caps staged a sit-in and sang patriotic songs to express their solidarity with the veteran social activist.“The common people have elected you (lawmakers) to the Parliament. The Prime Minister had promised and had given a written assurance that the government will include the three key demands outlined in the Jan Lokpal Bill. But we have been betrayed,” said Rakesh Yadav, a Hazare supporter.“So, keep in mind that if we can elect you in Parliament then we can overthrow you from Parliament and this demonstration is a warning to highlight that,” he added.

Meanwhile, the locals in West Bengal’s Kolkata city also came out on the streets and waved the national flag to mark their support to Hazare.Hazare sat on a daylong fast at the Jantar Mantar in New Delhi to protest against the proposals of Parliamentary Standing Committee on the Lokpal Bill.Hazare, who is fighting for a strong anti-graft bill, has been demanding that the lower bureaucracy should be brought within the ambit of the Lokpal besides provisions for Citizen's Charter and setting up of Lokayuktas under a central law.

The 74-year-old social activist has also warned the government that he would sit on an indefinite fast from December 27 at the Ramlila Maidan here if a strong Lokpal Bill is not passed in the ongoing Winter Session of Parliament. People are curious where it will all lead to but hats off he do what he says !

Friday, December 9, 2011

हमारे देव बाबू

                                                
देव बाबू की  सुर्खियों मे रहने की कला ही है जो आज हर अखबार की खबर यह साठ के दशक का स्टाइल आइकॉन बना बैठा है और देश के गणमान्य, न्याय से जुड़े  लोग खीज रहे है की मीडिया संवेदन हीन खबरों को तूल देरही है और घोटालो ,किसान अत्म्हात्याओ को तरजीह नहीं दीजारही है |

तो काटजू साहब ५०,६० और ७० के दशक के सामाजिक और संस्कृतिक मुद्दों का सही सटीक चित्रण अगर आज कोई देखना चाहता है और जिनसे उनतीनो दशको में परिवर्तन आया है वो इन्ही देव बाबू की फिल्मो की वजह से ..
युवा शक्ति युवा भारत की  सोच बनाने में देव साहब जैसे ही लोगो का हाथ है

और यदि ऐसे फिल्मकार ,को किसी अखबार के मुखपृष्ट पर जगह मिली तो उनकी शिक्षा ,नारी सम्मान ,सहनशीलता की  प्रगतिशील सोच ,मेहनत ,परिश्रम के बल पर मिली उनकी फिल्मो में ग्रामीण परिवेश का बखूबी चित्रण  ,विश्ववादी सोच  को ६० के दशक में छोटे शहरो में देव साहब ही लेकर गए १९९९ में अटल जी देव साहब को   अपने साथ लाहोर ऐसे ही नहीं लेगए .

आज भी लोग उनकी बाल बनाने से ले कर चलने बोलने और कपडे पहनने का अनुसरण कर रहे है टोपी को नया आयाम देव साहब ने ही दिया .अतः मेरी विनती है देश प्रेमी लोगो से की देश के लोग खुशहाली और कला से जुडी खबरे भी पढना चाहते है और देव बाबू जैसे फिल्म निर्माता जाने अनजाने में देश को बहुत कुछ दिया ..

Thursday, December 8, 2011



                                        

                                                                 
                                                   By tHe oF GrEYSkuLL



  

                                               

Tuesday, December 6, 2011

लड़ना है तो ..आइए इस युद्धभूमि में !

इंटरनेट पर आपत्तिजनक तस्वीरों आदि आदि पर आप इतने नाराज़ क्यों हैं. ये मेरी समझ से बाहर है. फेसबुक, गूगल और सोशल नेटवर्किंग कंपनियों के अधिकारियों ने आपकी घुड़की नहीं मानी आप उससे भी नाराज़ लगते हैं.जिस तरह से आप अपने प्रेस कांफ्रेंस में पत्रकारों के साथ घटिया व्यवहार कर रहे थे वो भी कई लोगों को आपत्तिजनक लग सकता है लेकिन आपके लिए कोई नियम लागू नहीं होता क्योंकि मंत्री तो आज़ाद है और देश भी स्वतंत्र है.आप तो टेलीकॉम मिनिस्टर हैं लेकिन लगता है कि आपको इंटरनेट की दुनिया के बारे में शायद ही कुछ पता है. इस दुनिया में मेरे जैसे छोटे मोटे लोग भी गालियां खाते हैं.


 आप तो मंत्री हैं आप कुछ भी कर सकते हैं. सूचना की लड़ाई है कपिल जी...आपको लड़ना है तो आइए इस युद्धभूमि में. सूचना को सूचना से काटिए अपनी कुर्सी की ताकत से नहीं.आपत्तिजनक फोटो हैं उसकी शिकायत कीजिए. सरकारी कार्यलय तो नहीं लेकिन सोशल नेटवर्किंग साइटों पर इसे ब्लॉक भी किया जा सकता है.मैंने खुद कई बार उन तस्वीरों पर आपत्ति जताई है जिसमें से शायद कुछ तस्वीरें आपकी हों.


 और हां    अगर आप सोच सकें तो थोड़ा सोचें कि लोग सोशल नेटवर्किंग पर ही सरकार को क्यों निशाना बना रहे हैं क्योंकि शायद अख़बार लोगों की बात नहीं सुन रहा है और उनकी बात लिख नहीं रहा है. युग में सोशल नेटवर्किंग ने एक हथियार दिया है आम लोगों को. इस हथियार को छीनने की कोशिश मत कीजिए. लड़ना है तो इस क्षेत्र में उतरिए और लड़िए.

Saturday, December 3, 2011

The Indian wedding

An Indian Wedding in northern part is more a religious ritual than a social ceremony. That is why; an Indian wedding is full of several traditional rituals and cultural customs being followed from centuries. It is an elaborate, expensive and emotional event full of sacred religious rituals and customs. For Indians, wedding is a grand affair that includes participation from each and every family member, relatives and even neighbors.Indian Wedding is not only a nuptial knot between two human beings rather it is a tie between two families.

First of all, a pre-wedding announcement is done through a formal engagement ceremony which is called Sagaai ,where both the families exchange gifts and good luck charms.As like every other wedding ceremony it takes about an hour or 2, but in tradition  celebrate weddings ceremony which takes about 3 days to complete! 

This tradition is an Indian wedding. So let’s get started. First of all they have to invite lots of people from around, then book some motels so that invited guest can have a good stay. And following that make arrangements for food for the guests, so hire some chefs. 

The bride and groom have to be ready for the 3 day marathon so, their bodies are covered and washed with turmeric (Haldi)paste which makes their body cool and fair. The first day includes some primary rituals which have to be done prior to the wedding. It longs for about 5 to 6 hours. After that there is buffet arrangement for the guests to have a good meal.

 The second day is the wedding day, this is the day full of trouble,the brides side, have to look for every single thing, which is in the hall for the groom side, that they don’t face any trouble regarding hospitality. Anybody who walked in through the entrance of the tent found a small hallway (still in the tent) which sprayed him or her with tropical scents. Inside the tent you would be greeted by lost of chair, cushions and a square stage in the centre of it all with a swing chair on it.Then after the wedding the new couple went off in a horse and carriage, and well the rest partied.

Friday, December 2, 2011

For the sake of LIKE

Friends ,while building a fan base for a blog, one of the common ways to do so is to go out and do some blog commenting, in hopes that the blog owner will make a comment on your site in return. Or when building Twitter followers, one easy way to get followers is to agree to follow those that follow you back. In the beginning, reciprocation is easy because you are working with a small group of readers, followers or friends.


when it comes to reciprocation, especially for social promotion, you have to consider your following before you share something. Sure, there may be a cool person who is always retweeting your posts and you would love to return the favor. But what if their posts do not align with the kind of content you want to share with your followers?Do you go by the code of reciprocation and share it anyway, with the possible consequence of losing followers? Or do you ignore reciprocating, with the possible consequence of losing this loyal reader and promoter of your content?


From an alternative point of view, are you only doing things in expectation of reciprocation? Are you tweeting articles that you don’t even read by “major players” in hopes that they will start retweeting your articles? Are you becoming a fan of Facebook pages that you don’t care about in hopes that those page owners will become a fan of your page?


If you are only doing things for acknowledgment, then maybe you should stop. Perhaps you should look toward receiving thank yous from your followers because you are providing them valuable information instead of links that are no value to your followers simply to reciprocate or gain acknowledgment from someone else.

Wednesday, November 30, 2011

Salesmen ,Leave your ego at home .

 “can you imagine, while these brands are having a tough time getting customers here, the sales staff at this store tried her best not to sell me these pair of shoes.” My friend once told me ,he told the staff that he wasn’t looking for something that was on Sale. Then the staff once again urges him to try something else and not the pair that he actually liked. Finally as he was ready to walk out of the store without buying anything, the staff reluctantly offers him what was originally wanted.


Similar thing happens here as well, where a big shot wanted the brand to send her a few pieces home so that she could choose what she liked and the brand refused to do it because their “global policy did not allow them to do that.” And then there are many cases like this where attitude replaces professionalism and courtesy that is so required for retail business.Companies need to train these guys on the aspects of luxury so as to make them understand the need to please their customers. If numbers are what they are looking at, and I know that’s what they are looking at, they need to get their acts together and they ought to do that pretty fast.


Shutting shops are black marks on the brands for sure and the funny thing is that they are shutting not because their products are bad. It is because of inefficient people running their brands and below average sales staff with hardly any knowledge of the product manning sales counters. Add to that their ego that they forget to leave behind while coming to work.

Tuesday, November 29, 2011

Save while you surf

Friends, do you know that using laptops and desktop computers have a lot of diference in terms of energy comsumption ?
According to a rough calculation your laptop's consumption might be "50w x 10 hours a day x 365 days = 182.5 kilowatts ;whereas a desktop's energy or power consumption may be "300s x 10 hours a day x 365 = 1095 kilowatts".

There is a huge difference as you can see and in terms of carbon emissions, the savings by using a laptop are  over half a ton.Switching from a desktop machine to a notebook is a great way to save electricity. However, even with a desktop system there's a lot you can do to green your computer use.


When you're not using your computer for extended periods, switch your computer off at the wall to avoid  power load consumption. Ensure while using your computer, only have your screen as bright as you need it - unneccesarily bright screens will use additional electricity. your power saving/management options are enabled and properly configured.For a screen saver, use a blank (black) screen as animated screen savers are energy suckers. So friends by using these small tips we can contribute to make the enviornment green and clean .

Monday, November 28, 2011

Loner :love living lonely

Janet previously admitted that she has become a “loner” in the house, saying she’s not made any friends with the other hopefuls and even hit out at the lack of “intellectual conversations” with her fellow finalists.
“I’ve always been a loner,” she said. “I’m not interested in making friends or getting people to like me. I’m here for the music and that’s it.”


I too like to spend a lot of time alone. I like to eat out .  I like to go driving at times.  I jog a little here and there.  And while I do a lot of that , I’m just comfortable being in the spaces by myself.Am I a loner ?
It is difficult to be introspective .So what did I think about during those moments of unusual quiet?  At first, there was a flood of thoughts about nothing.It is a depressing time to be a hotelier or even an agriculturist.  But there may be a silver lining tucked away inside this gray cloud.

It turns out we are alone in your desire to be, well, alone. Although an estimated three-quarters of the population are extroverts who thrive in social situations, the rest of us feel best only after we've had time to ourselves.For me  solitude is simply a life strategy. It's their way of coping and dealing with overstimulationWhen it comes to communication, work responsibilities and relationships, loners aren't necessarily losers who fear social functions. Many are married and maintain close relationships with their partners, family and friends; engage in social activities; and even enjoy attending a party once in a while. But idle chitchat and large social functions can be an energy drain for those who crave quiet. They need plenty of “alone time” in order to regroup .

A loner can also become a freak through isolation. Humans learn how to be human through social interaction. And there are many social skills that can only be learnt in person — isolation can lead to a lack of social skills. When you're raised in isolation, you behave differently. Many psychological disorders originate from a deficit in human interaction. Then that person will be shunned. It's kind of a vicious cycle.

Sunday, November 27, 2011

Solar Energy

Solar energy is the most readily available source of energy. It does not belong to anybody and is, therefore, free. It is also the most important of the non-conventional sources of energy because it is non-polluting and, therefore, helps in lessening the greenhouse effect.



When we hang out our clothes to dry in the sun, we use the energy of the sun. In the same way, solar panels absorb the energy of the sun to provide heat for cooking and for heating water. Such systems are available in the market and are being used in homes and factories.
In the next few years it is expected that millions of households in the world will be using solar energy as the trends in USA and Japan show. In India too, the Indian Renewable Energy Development Agency and the Ministry of Non-Conventional Energy Sources are formulating a programme to have solar energy in more than a million households in the next few years. However, the people’s initiative is essential if the programme is to be successful.

India is one of the few countries with long days and plenty of sunshine, especially in the Thar desert region. This zone, having abundant solar energy available, is suitable for harnessing solar energy for a number of applications. In areas with similar intensity of solar radiation, solar energy could be easily harnessed. Solar thermal energy is being used in India for heating water for both industrial and domestic purposes. A 140 MW integrated solar power plant is to be set up in Jodhpur but the initial expense incurred is still very high.

Saturday, November 26, 2011

रिटेल बाज़ार में विदेशी निवेश

सुना है किसी बड़े कंपनी के मालिक ने हिंदुस्तान में दुनिया का सबसे महंगा घर बनवाया है. आज़ादी से पहले बुनकरों का काम अंग्रेज़ी सरकार ने छीन कर उन्हें मिल मज़दूर बना दिया था, आज़ादी के बाद भी ये सब कुछ रुका नहीं है. टेलर, सुनार सभी अब अपनी दुकान बंदकर मज़दूर बन गए हैं. ये सेल्फ इंपलॉयमेंट हटा कर इन्हें नौकर बना रहे हैं.सवाल यह नहीं है कि विदेशी खुदरा व्यापारियों के हमारे देश में आने के बाद हमारे दुकानदार बर्बाद हो जाऐगें। सवाल ये है कि इस देश का क्या कोई अपना ढांचा रहेगा.


आम उपभोक्ता को शुरूआत मे वॉलमार्ट का आगमन अच्छा लगेगा परंतु लंबे समय की व्यापारिक रणनीति बनाने वाली कंपनी से ग्राहकों को लंबे समय मे नुकसान होगा. खुदरा बाजार मे प्रत्यक्ष विदेशी मुद्रा निवेश का देश को कुछ अधिक लाभ नही होगा.विदेशी कंपनियों के लिए भारत के दरवाज़े खोलने का मतलब होगा हमारे ग़रीब किसानों की दुर्दशा को और बढ़ाना. देश में रोज़ किसान मर रहे हैं और सरकार ने उनकी ओर से आंखें मूंद रखी हैं, और उस पर विदेशी कंपनियों को यहां बुलाकर जले पर नमक छिड़क रही हैं. सरकार को विदेशी मुद्रा के फेर में ना पड़ते हुए हमारी पारंपरिक खेती को बढ़ावा देना चाहिए जिससे किसानों की हालत सुधरे.


भारत जैसे उभरते बाज़ार पर आज हर किसी की नज़र है. भारतीय रिटेल बाज़ार में विदशी निवेश के दूरगामी दुष्परिणाम होंगे. इससे छोटे दुकानदारों का अस्तित्व ही खतरे में पड़ जायेगा. इसमें प्रतिस्पर्धा को बढ़ावा देने का सवाल ही पैदा नहीं होता क्योंकि प्रतिस्पर्धा तो बराबर वालों से होती है. आज ऐसे ही भारतीय बाजार में विदेशी पकड़ काफी मजबूत है, ऐसे में सरकार को चाहिए था की वह छोटे व्यापारियों को बढ़ावा दे.


जब देश की अर्थव्यवस्था को विदेशी निवेश के बल पर ही चलाना है तो कुछ भी करना ठीक है! देश की जनता केवल वोट देने के लिए है और वह वोट तो देगी ही.जिसे भी वोट देगी,वही करेगा सोचने की बात यह है की पश्चिमी पूंजीवादी अर्थव्यवस्था क्या पश्चिम में सफल रही है? आज बैंको, बड़े कॉरपोरेट कंपनियों और वॉल स्ट्रीट के खिलाफ दुनियाभर में इतने प्रदर्शन क्यों हो रहे हैं?

Friday, November 25, 2011

Howzatt !!!!

One fine day the mobile rang and a booking for two super deluxe rooms were done by the reservation manager cum F&B manager cum FOM of a budget hotel.Suddenly he realize of not asking for any advance but he was sure and marked the name and date in the diary and was again busy in day to day affairs.

Days passed by and the day for when the booking was done arrived at about 5.00 Am a call arrived on the cell phone and the person picked it up the phone .
 The ear piece said "Sir we are at the railway station how to come ,where is the taxi ?
 Answers hotelier  "Shrimaan you can ask an autowala and he will charge Rs 100 .Taxi is not recomendable .
"so we will be at the hotel in half an hour rooms should be ready "instructs the guest.
After half and hour reception area is in action check in formalities are done and room is allotted .Guests settledown and orders for breakfast and start unpacking .All is well !

Suddenly a person from the room comes and says there is a confusion and the hotel is not the same where we were suppose to check in and you even didn't send taxi for the pickup ? Is it the "Rajwara Palace " no sir its not ,replied the hotelboy .And the mess deepens .Guest comes and says we had a booking at RP and there is no booking for us here so you hotel people cheated on us and now we are leaving .The hotelier opened the booking dairy and show the guest the date and his mobile no and instructions for his room which the guest has given at the time of booking .On seeing it the guest requested and said that they had mistakenly arrived at this place whereas they have booked room at a different hotel where they also had a pickup facility and the total amount is also given in advance to the hotel so we have to move there .We mistakenly arrived at your place .

Shall we let him go as it was a mistake ? was it a delibrate attempt and the guest kept both ends open but by mistake he landed up at second option ? was in our mind .........What to do either to charge as the room was booked or let him go ? Please suggest !!!

Thursday, November 24, 2011

सब नंगे हैं.......

हाथ में तिरंगा झंडा लेकर सड़कों पर भारत माता की जय करने में मज़ा बहुत आता है. उस पर भी जब ट्रैफिक वाला न टोके और पुलिस वाला रास्ता दे दे तो क्या कहने ...हाथ में तिरंगा ले लेने से और भारत माता के जयकारे लगाने से कोई ईमानदार नहीं हो जाता. ईमानदारी जीवन में रचने-बसने की चीज़ होती है और ईमानदार का जीवन कठिन होता है.


लंदन के ट्रैफ़ेलगर स्क्वायर का नाम सुना है ना, देखा भी होगा, हिंदी फ़िल्मों में अक्सर दिखता है, दिलवाले दुल्हनिया ले जाएँगे के शुरू में ही अमरीश पुरी वहाँ कबूतरों को चुग्गा डालते दिखाई देते हैं.उसी ट्रैफ़ेलगर स्क्वायर पर इन दिनों एक घड़ी लगी है, उसमें उल्टी गिनती चल रही है, अगले साल होनेवाले ओलंपिक खेलों की .सवाल ये भी उठ रहे हैं कि ये जो दो हफ़्ते की बारात सजेगी उसका आम लोगों को क्या फ़ायदा होगा - क्या नई पीढ़ी में खेल को लेकर नई ऊर्जा जगेगी? क्या पूर्वी लंदन के जिस उपेक्षित इलाक़े में निवेश हो रहा है, उससे वहाँ की तस्वीर बेशक बदल जाए, लोगों की ज़िंदगियों में स्थायी बदलाव आएगा? दिल्ली में तो पिछले साल बड़ा ग़ज़ब का खेल हुआ, खेल के कुछ दिन पहले पुल ज़रूर टूट गया, लेकिन अंत होते-होते जलवा दिखा ही दिया दिल्ली ने !


'हम्माम में सब नंगे हैं', इस मुहावरे के साथ ही अक्सर बहस ख़त्म हो जाती है, कोई दूध का धुला नहीं है इसलिए बहस बंद करके दोबारा हम्माम में डुबकी लगाने को बेहतर समझा जाता है.भारत से अलग बात ये है कि ब्रिटेन की संसद में, प्रेस में और लोगों के बीच बहस अब भी जारी है, बंद नहीं हुई है . उन देशद्रोहियों का कोई खंडन क्यों नहीं करता जो रोज़ रिश्वत लेकर आपका काम करते हैं और देश को नीलाम करते हैं.

Wednesday, November 16, 2011

Marching towards mark NINE

Nobody then really had any idea,there were few censuses.Leeuwenhoek started with an estimate that around a million people lived in Holland .Using maps and a little spherical geometry,he calculated that the inhabited land area of the planet was 13385 times large as Holland.It was hard to imagine the whole planet being densly populated as Holland which seemed crowded even then.Thus Leeuwenhoek concluded "there couldn't be more than 13.385 million people on earth ;a small number indeed compared with the 150 billion sperm cell of a single codfish.

The number of people does matter,of course.But how people consume resources matters a lot more.Some of us leave much bigger footprints than others.The central challenge for the future of people and the planet is how to raise more of us out of poverty :the slum dwellers in Delhi ,the subsistence farmers in Rwanda,while reducing the impact each of us has on the planet.

The world bank has projected that by 2030 more than a billion people in the developing world will belong to the global  middle class,up from just 400 million in 2005 .That's a good thing.But it will be a hard thing for the planet if those people are eating meat and driving gasoline powered cars at the same rate as now.Its too late to keep the new middle class of 2030 from being born but not too late to change how they and rest of us will produce and consume food and energy .

In 1798 Thomas Malthus ,an English priest and economist stated that population necessarily grow faster than the food supply ,until war ,disease,and famine arrive to reduce the number of people.As it turned out the last plagues enough to put a dent in global population had already happened .

For centuries population pessimists have hurled apocalyptic warnings at the congenial optimists,who believe that humanity will find ways to cope and improve its lot.History has so far favored the optimists,but history is no certain guide to the future.Neither is science.It can't predict the outcome of people vs planet . How many of us there will be and how we will live depend on choices we have yet to make .We may see to it that all children are nourished ,educated to solve problems could change the future significantly.An un check population growth could lead to famine !

Seven billion of us already ,nine billion in 2045.Let's hope that Malthus was right about our ingenuity.