Wednesday, December 14, 2011

अर्थ

मुझ जैसे स्‍कूली बच्‍चों को छुटिटयों के बाद स्‍कूल जाना सबसे ज्‍यादा डरावना लगता होगा क्यूकि  हॉलिडे होमवर्क कल करेंगे करते करते पूरी छुटिटयां मौज मस्‍ती में गुजारी हों | ठीक इसीतरह आज भी कल करेंगे कल करेंगे कहते कहते अपनी जिन्‍दगी गंवा दूगा शायद , अंतिम सांस अफसोस के साथ छोड़नि पड़े की , काश! कुछ वक्‍त और मिल जाता। आज सुबह जब मैं अपने घर में  टहल रहा था तो ये विचार  अचानक दिमाग में आ टपका और इस विचार से पहले मेरे दाता सा द्वारा सुनाई एक कहानी याद आई जो स्कूली बच्चो या मानव जीवन पर सही सही टिप्पणी है 


खेतों में एक बिना छत वाला कमरा था, वहां पर एक अमलची  (नशेड़ी) रहता था, और सर्दी के दिन थे। जब रात के समय उसको सर्दी लगती तो वह कहता, सूर्य उगते ही इस कमरे पर छत डाल दूंगा, ताकि अगली रात को सर्दी मेरी नींद में रुकावट न डाल सके, मगर सुबह होते ही उस अमलची  के शब्‍द बदल जाते, कितनी प्‍यारी धूप है, मजा आ गया और वह भूल जाता जो बात उसने रात को ठिठुरते हुए कही थी। इस तरह सिलसिला चलता रहा, अमलची  के संवाद मौसम के साथ बदलते रहे, और अंत में सर्दी खत्‍म होने से पहले अमलची  खत्‍म हो गया। 


कहानी ख़त्म और हम खेलने मे व्यस्त,किसी ने सार के बारे मे नहीं सोचा ... समय निकलता गया और आज जीवन ने खुद ब खुद उस कहानी का अर्थ समझा दिया |