Thursday, March 15, 2012

शीतला :ठंडा भोजन

हिन्दू धर्मशास्त्रों के मुताबिक चैत्र कृष्ण अष्टमी ही नहीं, बल्कि चैत्र सहित आने वाले चार माहों में शीतला अष्टमी पर माता की पूजा, ठंडे भोजन का भोग व जागरण का विधान है। किंतु प्रमुख रूप से चैत्र माह में यह व्रत-पूजा का विशेष महत्व है। दरअसल, इसके पीछे ऋतु परिवर्तन व संक्रमण से होने वाले गंभीर रोगों के बचने का भी विज्ञान है। 


घरों में पानी की मटकियों पर मां शीतला की अनुकृति चित्रित कर पूजा-अर्चना कर महाआरती की जाएगी  श्रद्वालुजन इस बासी भोजन को मां शीतला के प्रशाद स्वरूप ग्रहण करेगे। घर-परिवार के छोटे बच्चों को मां शीतला के चरणों में धोक लगवाकर उनके उत्तम स्वास्थ्य एवं दीर्घायु की कामना की जाएगी। महिलाऐं अलसुबह मां शीतला की स्तुति वंदना के साथ कुमकुम, केशर, धूप, दीप गुलराब, धोली राब, बाजरे की रोटी, बेसन रोटी, दही आदी पकवानों के साथ मां शीतला का पूजन करेगी।


धार्मिक दृष्टि से यह व्रत और ठंडा भोजन शीतला माता की प्रसन्नता के लिये किया जाता है। किंतु वैज्ञानिक नजरिए से इस परंपरा के पीछे चेचक रोग से बचाव व इसकी पीडा का शमन करना ही है। धर्मशास्त्रों में भी इस रोग का संबंध माता के गर्भ से ही बताया गया है। जिसके अनुसार जब बालक गर्भ में होता है तब उसकी नाभि माता के हृदय से एक रक्त नली द्वारा जुडी होती है। उसी से उसका पोषण भी होता है। यही संधि स्थान ही इस रोग का मुख्य केन्द्र माना जाता है। गर्भ से बाहर आने पर कालान्तर में अनियमित खान-पान और मौसम के बदलाव से व्यक्ति के माता से प्राप्त इसी रक्त में दोष पैदा होने से चेचक नामक रोग उत्पन्न होता है। 



 मंदिर में दिन भर मां शीतला को शीतल जल से स्नान करवाने तथा बासी भोजन का भोग लगाने का क्रम जारी रहेगा। महिलाऐं नवजात व छोटे बच्चों की धोक लगवाकर मां का आशीर्वाद मांगेगी।रम्मत का शुभारभ्भ मां शीतला स्वरूप के अखाडे में पदार्पण के साथ होगा। तत्पश्चात मां शीतला की स्तुति वंदना की जाएगी।