Sunday, June 5, 2011

क्या मर चुकी है अंतरात्मा ?


बड़े बूढ़े कहते थे जब कोई दुविधा हो तो अंतरात्मा की सुनो. जो सही है वही सुनाई देगा....आज के दिन लगता है मानो ट्विटर, फ़ेसबुक, 24 गुणा सात टेलीविज़न और अनगिनत अख़बारों को देख-देखकर अंतरात्मा भी कनफ़्यूज़ सी हो गई है.
 अंतरात्मा सठिया गई है. अब वो ये भी नहीं पहचान रही कि नायक कौन है और विलेन कौन ? शायद  सही हैं..सचमुच सठिया गई है वो अब तो उन स्कूली बच्चों की तरह करती है जिनसे मास्टर साहब ने पूरी क्लास के सामने एक आसान सा सवाल पूछा हो और उसका उत्तर न दे पाने की शर्मिंदगी में नाखून चबाने लगते हैं.
अंतरात्मा भी आजकल डिप्लोमैटिक हो गई है. पहले गूगल पर सर्च करती है, कुछ पुराने आरोपों-अनुभवों पर नज़र दौड़ाती है और फिर चुप रहने में ही अपनी भलाई समझती है.
हम दुनिया के सबसे बड़े लोकतंत्र कहे जाते हैं और हर बार अपील की जाती है कि अपनी अंतरात्मा की आवाज़ पर वोट दीजिए.लेकिन जब नतीजे आते हैं तो पता चलता है कि बहुत से ऐसे लोग संसद पहुंच गए हैं जिनसे हम आमतौर पर मिलना पसंद न करें. मतदान के वक्त सास-बहू सीरियल देख रही थी अंतरात्मा.
बिनायक सेन पर देशद्रोह का आरोप लगता है. गूगल सर्च बता रहा है कि उन्हें आदिवासियों के कल्याण के लिए काम करते देखा गया है.तो क्या वो निर्दोष हैं? फिर से चुप्पी.
टीम इंडिया के कप्तान महेंद्र सिंह धोनी कहते हैं कि जीत के लिए उनके लड़के जी-जान लगा देंगे. लेकिन 29 रनों के अंदर नौ विकेट गिर जाते हैं.इस बार अंतरात्मा चुप है कि क्रिकेट में उतार चढ़ाव तो होते ही रहते हैं लगता है कि अंतरात्मा से अब बातें ना करने में ही भलाई है. जब जवाब ही न मिले तो पूछ कर क्या फ़ायदा. 
वैसे भी ट्विटर, फ़ेसबुक और ढेर सारे ख़बरदार चैनल्स तो हैं ही.
वैसे आपकी अंतरात्मा के क्या हाल हैं?