Monday, May 7, 2012

क्रांति

आजादी के बाद से ही भारत ने कृषि उत्पाद एव उपज में काफी प्रगति की है |यह हरित क्रांति (खाद्यान ) ,श्वेत क्रांति(दुग्ध ),पीत क्रांति (तिलहन ) और नील क्रांति(कृषि जल ) से है | आज भारत विश्‍व में दुग्‍ध, मछली, तम्‍बाकू, नारियल तथा चाय के सबसे बड़े उत्‍पादकों में से एक है। यह गेहूँ, सब्‍जी, चीनी, मछली, तम्‍बाकू तथा चावल के उत्‍पादन के लिए भी प्रसिद्ध है। बागवानी, जैव कृषि जेनेटिक इंजीनियरी, पैकेजिंग एवं खाद्य प्रसंस्‍करण जैसी कई प्रकार की कृषि में निर्यातों के माध्‍यम से राजस्‍व में वृद्धि को देखने की शक्ति है।

अट्ठारहवीं शताब्दी के उत्तरार्ध तथा उन्नीसवीं शताब्दी के पूर्वार्ध में कुछ पश्चिमी देशों के तकनीकी, सामाजिक, आर्थिक एवं सांस्कृतिक स्थिति में काफी बडा बदलाव आया। इसे ही औद्योगिक क्रान्ति के नाम से जाना जाता है।गुलाम देशों के स्रोतों के शोषण और लूट के बिना औद्योगिक क्रान्ति सम्भव नही हुई होती, क्योंकि औद्योगिक विकास के लिये पूंजी अति आवश्यक चीज है और वह उस समय भारत आदि गुलाम देशों के संसाधनों के शोषण से प्राप्त की गयी थी।

अब लगभग हर चीज़ का निजीकरण हो चुका है. हमारी नदियाँ, पहाड़, जंगल, खनिज, पानी सप्लाई, बिजली और संचार प्रणाली प्राइवेट कंपनियों को बेच दिए गए हैं.जंतर मंतर पर मौजूद मध्यम वर्गको मीडिया ने  “क्रांति” और भारत का तहरीर चौक बताया |

विचार और आर्थिक हालतें ही क्रांतियाँ पैदा करते हैं ज्यादातर लोग सलामती को दुनिया में सबसे ज्यादा चाहते हैं, जो कुछ उनके पास है उसे वे छिन जाने के खतरे में नहीं डालना चाहते, लेकिन जब आर्थिक हालतें ऎसी हो जाती हैं कि इनकी रोजमर्रा की मुसीबतें बढ़तीं जाती हैं और जीवन बर्दाश्त से बाहर का बोझ बन जाता है, तो कमजोर-से-कमजोर भी जोखिम उठाने के लिए तैयार हो जाते हैं | तभी जाकर बेचैनी फैलानेवाले की आवाज़ पर कान देते हैं, जो उनको उनकी मुसीबत से निकलने का रास्ता बतलाता हुआ मालूम होता है  |