Thursday, March 22, 2012

कोशिश ....दूर की कौड़ी

 मंजूनाथन से लेकर सत्येन्द्र दुबे या यशवंत सोणावठे  जैसे किसी ने भी अपने कर्तव्यों का निर्वाह करते जब इन आजकल के कंसो के हाथों जान देदी तब शायद ही कोई तूफान भारतीय युवा के मन में उठा हो | हाँ क्रिकेट के मैदान की हार युवा मन में मातम पैदा जरुर कर सकती है | मूवी के सितारे कही कही भगवान की तरह मंदिर बनाकर पूजे जाते है | उनका बलिदान का गुणगान करने कि फुर्सत किसी को नहीं बची है |३३ वर्षीय युवक अनिल जेथवा को गुजरात हाई कोर्ट के परिसर में ही गोली मार दी गयी। जिसके बाद अनिल की मौत हो गयी। अनिल की गलती सिर्फ ये थी कि उन्होंने गिर फॉरेस्ट एरिया में गैरकानूनी रूप से माइनिंग करने वालों के खिलाफ आवाज उठानी चाही थी। ऐसे कितने ही नाम हैं जिन्हें भ्रष्टाचार के खिलाफ आवाज उठाने के बदले मौत मिली और भारत में ऐसे हर व्हीसिल ब्लोवर की मौत के बाद व्हीसिल ब्लोवर एक्ट का थोड़ा हल्ला मचाया जाता है और फिर सारा मामला शांत हो जाता है।

५० वर्षीय विक्रम लक्ष्मण दोदिया एक दुकान के मालिक थे। इन्होंने आरटीआई के उपयोग से सिर्फ ये जानना चाहा था कि शहर में कितने बिजली के कनेक्शन गैरकानूनी तौर से चलाए जा रहे हैं। सूचना तो नहीं मिली लेकिन पर्दा फाश होने के डर से दोदिया को जान से मार डाला गया। सतीश शेट्टी भी ऐसे ही शक्स थे। ३८ वर्ष की उम्र में इन्होंने शहर में हो रहे भूमि द्घोटालों को सबके सामने लाने की ठान ली थी। परिवार को धमकियां मिलने के बाद भी सतीश का हौसला टस से मस नहीं हुआ। नतीजा ये हुआ कि १३ जनवरी को इनकी भी हत्या कर दी गयी। ऐसी हत्याओं में पैसे और रुतबे वाले लोग शामिल होते हैं। इसलिए बहुत कम मामलों में ही दोषियों को सजा होती है। दोदिया मामले में उनके परिवार वालों का कहना था कि जिस दिन दोदिया की हत्या हुई उस दिन उन्हें पुलिस स्टेशन बुलाया गया जहां उन्हें पीछे हटने के लिए पैसे देने का वादा किया गया। लेकिन भ्रष्टाचार के खिलाफ आवाज उठा चुके दोदिया ने नेताओं और अफसरों की तरह बिकना पसंद नहीं किया। इसके बाद द्घर आते समय रास्ते में ही कुछ लोगों ने उन्हें मार दिया। इसमें कोई आश्चर्य नहीं होगा कि ऐसे कई मामलों में खुद पुलिस भी शामिल होती है।  

भ्रष्टाचार के खिलाफ आवाज उठाने और देश को भ्रष्टाचारियों से मुक्त करने की कोशिश करने वालों को पुरुस्कृत करना तो ..है कम से कम सरकार को ऐसे लोगों की सुरक्षा के बारे में तो सोचना चाहिए। चाहे एक सामान्य कंपनी में कार्यरत मंजुनाथन हो या एडीएम जैसे पावरफुल औदे पर काम कर रहे सोणानठे ।

सोणावठे की हत्या के ४८ द्घंटे भी नहीं हुए थे कि एक और आरटीआई कार्यकर्ता को अपनी जान गवांनी पड़ी। अमरनाथ पांडे जो कि ५५ वर्ष के थे और कांग्रेस कार्यकर्ता के रूप में जाने जाते थे, उन्हें भी भ्रष्टाचार के दंश ने डस लिया। आरटीआई के तहत अमरनाथ पांडे ने डेवलपमेंट ब्लॉक के अफसरों द्वारा की जा रही ३० लाख की धांधली को पकड़वा दिया था। इस पर अमरनाथ पांडे को मरवा दिया गया। देश में भ्रष्टाचार इतना ताकतवर हो चुका है कि इसके खिलाफ उठने वाली सभी आवाजों को बेरहमी से कुचल दिया जाता है।