Thursday, November 24, 2011

सब नंगे हैं.......

हाथ में तिरंगा झंडा लेकर सड़कों पर भारत माता की जय करने में मज़ा बहुत आता है. उस पर भी जब ट्रैफिक वाला न टोके और पुलिस वाला रास्ता दे दे तो क्या कहने ...हाथ में तिरंगा ले लेने से और भारत माता के जयकारे लगाने से कोई ईमानदार नहीं हो जाता. ईमानदारी जीवन में रचने-बसने की चीज़ होती है और ईमानदार का जीवन कठिन होता है.


लंदन के ट्रैफ़ेलगर स्क्वायर का नाम सुना है ना, देखा भी होगा, हिंदी फ़िल्मों में अक्सर दिखता है, दिलवाले दुल्हनिया ले जाएँगे के शुरू में ही अमरीश पुरी वहाँ कबूतरों को चुग्गा डालते दिखाई देते हैं.उसी ट्रैफ़ेलगर स्क्वायर पर इन दिनों एक घड़ी लगी है, उसमें उल्टी गिनती चल रही है, अगले साल होनेवाले ओलंपिक खेलों की .सवाल ये भी उठ रहे हैं कि ये जो दो हफ़्ते की बारात सजेगी उसका आम लोगों को क्या फ़ायदा होगा - क्या नई पीढ़ी में खेल को लेकर नई ऊर्जा जगेगी? क्या पूर्वी लंदन के जिस उपेक्षित इलाक़े में निवेश हो रहा है, उससे वहाँ की तस्वीर बेशक बदल जाए, लोगों की ज़िंदगियों में स्थायी बदलाव आएगा? दिल्ली में तो पिछले साल बड़ा ग़ज़ब का खेल हुआ, खेल के कुछ दिन पहले पुल ज़रूर टूट गया, लेकिन अंत होते-होते जलवा दिखा ही दिया दिल्ली ने !


'हम्माम में सब नंगे हैं', इस मुहावरे के साथ ही अक्सर बहस ख़त्म हो जाती है, कोई दूध का धुला नहीं है इसलिए बहस बंद करके दोबारा हम्माम में डुबकी लगाने को बेहतर समझा जाता है.भारत से अलग बात ये है कि ब्रिटेन की संसद में, प्रेस में और लोगों के बीच बहस अब भी जारी है, बंद नहीं हुई है . उन देशद्रोहियों का कोई खंडन क्यों नहीं करता जो रोज़ रिश्वत लेकर आपका काम करते हैं और देश को नीलाम करते हैं.