Sunday, December 18, 2011

मलमल के कुर्ते पे छीटे लाल लाल ...

"पान खाय सय्या हमारो ..या ..खाई के पान बनारस वाला ........" उस ज़माने और आज मे बहुत फर्क आ गया लगता है | हम उत्तर भारतीय एक ज़माने में भरपूर भोजन के बाद पान का लुफ्त लेना नहीं चूकते कहा जाता था की पान पाचन में सहायक है | कौन सा पत्ता‍ लेंगे ? यथा चालानी, कलकतिया, बनारसी , देशी या फिर मीठा पत्ता .... आज के पान के हिसाब को मेरे खाते में डाल दीजिए और पीछे का हिसाब भी जोड़ दीजिएगा... आज इस तरह का वार्तालाप मनो  ख़त्म सा होचला है |
पान या तांबुल का प्रयोग भारत में कब से हो रहा है नहीं पता, पर प्राचीन काल से ही इसका उल्लेख सामने आता रहा है। इसने वह स्थान प्राप्त किया हुआ है कि पूजा अर्चना में इसे भगवान को भी अर्पित किया जाता है। अपने गुणों की खातिर इसे हमारी दिनचर्या में भी जगह मिली हुई है। आयुर्वेद में भी इसका उपयोग लाभकारी बताया गया है।पान का पूरा लाभ लेने के लिये उसमें जरा सी मात्रा में चूना, कत्था, जायफल, लौंग, ईलायची तथा पक्की सुपारी ड़ाल उपयोग करना चाहिये। कच्ची सुपारी का सेवन हानीकरक माना जाता है।



 
पान के सेवन से मुंह का स्वाद ठीक रहता है, जीभ साफ रहती है, गले के रोगों में भी फायदा होता है तथा चूने के रूप में शरीर को कैल्शियम की प्राप्ति हो जाती है। इसका उपयोग खाना खाने के बाद ही फायदेमंद रहता है।


पर आज  पान' की लाली फीकी हो चली है। लबों पर लाली के लिए अब महिलाएं पहले की तरह पान खाना पसंद नहीं करतीं बल्कि सौन्दर्य प्रसाधनों का उपयोग करने लगी हैं। सो, पान का चलन कम हुआ है। पान के रसिया कम हो चले है और थैली बंद गुटखो ने धीरे धीरे  उनकी जगह ले ली है जो पान से ज्यादा घातक और नुकसानदेह है  लोग यहाँ तक कहते है की आज के  मिलावटी पान मसाले कई गुना ज्यादा घातक हैं। इन्होंने पान खाने वालों को सलाह दी है कि वे प्रतिष्ठित दुकानों से ही खरीद कर पान मसालों का सेवन करें। दुकानों से मंगाये गए पान के बीड़े से यथा संभव परहेज करना चाहिए।गांवों के किसान बढ़-चढ़कर पान की खेती करते थे पर अब पाला के साथ ही सरकारी अनदेखी के कारण कृषक इससे मुंह मोड़ने लगे हैं।पान के पत्तों की बढ़ती कीमत के कारण लोग गुटखा खाना ज्यादा पसंद करते हैं |

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