आपको क्या नहीं लगता कि परिवहन या आवागमन का भी अधिकार होना चाहिए? क्या कभी आपने सोचा है कि गरीबी रेखा से नीचे के लोगों के आवागमन का माध्यम क्या है,ग्रामीण इलाके में चले जाइए, किराया बचाने के लिए लाखों लोग हर दिन जान पर खेल कर बस से लेकर ऑटो में लटक कर सफर करते हैं। किसी भी शहर में पचीस-पचास लोग टाटा 407 में भी खड़े होकर सफर करते दिख जाएंगे। इनके पास किराए के पैसे नहीं होते, इसलिए दो या पांच रूपया देकर खड़े होकर अपने काम या रहने की जगह पर पहुंचते हैं। गांव से शहर, शहर से महानगर पलायन करने के लिए बड़ी संख्या में लोग साहूकारों की चपेट में भी आ रहे हैं।
हमारे देश में तीस करोड़ से ज्यादा लोग गरीब बताए जाते हैं। हैरानी होती है कि अभी तक इनके आवागमन के अधिकार के बारे में क्यों नहीं सोचा गया? बीपीएल कार्डधारकों को सरकारी बसों में मुफ्त यात्रा की सुविधा का सरकार ऎलान क्यों नहीं करती है? जवाहरलाल नेहरू नेशनल अर्बन रिनुअल मिशन के तहत सार्वजनिक परिवहन को बेहतर बनाने की बड़ी-बड़ी बातें कहीं गई हैं। इसके तहत कई शहरों को बस सेवा के लिए फंड दिए गए हैं। ये सारी सुविधा गरीब के लिए है, तो गरीब को क्यों वंचित रखा जा रहा है?
शहर में ऎसे सैकड़ों लोगों से मुलाकात होती है , जो सरकारी पैमाने से गरीब नहीं हैं, मगर आवागमन में आर्थिक रूप से सक्षम नहीं हैं। बेटिकट यात्रियों में ज्यादातर वही लोग होते हैं, जो पंद्रह रूपए का टिकट नहीं खरीद सकते। हजारों की संख्या में प्राइवेट सिक्योरिटी गार्ड किराया देने में सक्षम नहीं हैं। उनकी तनख्वाह पांच या छह हजार रूपए से ज्यादा नहीं होती है। बल्कि कई मामलों में इससे भी कम होती है। लिहाजा वो वर्दी पहनकर भी पचीस रूपए का टिकट नहीं ले पाते हैं।
उसी तरह हिन्दुस्तान में रिटेल क्रांति करवाने वाले लोगों को पता भी नहीं होगा कि दक्षिण दिल्ली के ही तमाम मॉल में काम करने वाले कर्मचारियों का बड़ा हिस्सा बस में बिना टिकट सफर करने के लिए मजबूर है। सरकार या नीतियां बनाने वालों को इल्म नहीं है। शहरी क्षेत्रों में राजनीति करने वाले लोगों को भी इस तरह के मुद्दों को परखने के लिए वक्त नहीं है। ममता बनर्जी अच्छा-खासा कमाने वाले पत्रकारों को परिवार के साथ साल में दो बार रेल यात्रा करने की छूट देती हैं। वाहवाही लूटने के लिए। गरीबों को ऎसी ही छूट मिलेगी, तो क्या वाह-वाही नहीं मिलेगी, क्या वोट नहीं मिलेंगे?
सरकारी बसों में स्वतंत्रता सेनानी, विकलांग, मान्यता प्राप्त पत्रकार, सांसद और विधायकों को मुफ्त आरक्षित सीटें मिलती हैं। इनमें से पहले दो को छोड़ दें, तो बाकी तीन कैटगरी को आरक्षण नहीं मिलना चाहिए। बीस लाख की कार में चलने वाला कौन-सा सांसद या विधायक अब सरकारी बसों में चलता है। दिल्ली परिवहन निगम की बसों में आम लोगों के लिए नॉन एसी बस का मासिक रियायती पास 815 रूपए का बनता है। अगर आप मान्यता प्राप्त पत्रकार हैं, तो यही पास 100 रूपए का बनता है। फिर इसी दलील से मान्यता प्राप्त गरीबों को बस और ट्रेन में चलने के लिए रियायती या मुफ्त का पास क्यों न हो? बस या ट्रेन में रियायत मिल सकती है, तो मेट्रो रेल में क्यों न मिले?
शहरी गरीबों या बीपीएल कार्ड वालों के लिए मेट्रो में भी फ्री कार्ड होना चाहिए। सरकारी जमीन पर बने महंगे प्राइवेट अस्पतालों में गरीबी रेखा से नीचे के लोगों के लिए बिस्तर आरक्षित है। सरकारी जमीन पर बने महंगे प्राइवेट स्कूलों में गरीबों के बच्चों के लिए सीटें आरक्षित हैं। अदालतें भी इसके लागू होने की खबर लेती रहती हैं, तो उनकी निगाह से गरीबों के आवागमन का अधिकार कैसे छूट गया?
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