Thursday, May 5, 2011

8th may is mother's day.

ज़िंदगी मां के आँचल की गांठों जैसी है. गांठें खुलती जाती हैं. किसी में से दुःख और किसी में से सुख निकलता है.याद नहीं रहती तो वो मां की थपकियां. चोट लगने पर मां की आंखों से झर झर बहते आंसू. शहर से लौटने पर बिना पूछे वही बनाना जो पसंद हो.         याद रहता है तो बस बूढे मां बाप का चिड़चिड़ाना. उनकी दवाईयों के बिल, उनकी खांसी, उनकी झिड़कियां और हर बात पर उनकी बेजा सी लगने वाली सलाह.


आखिरी बार याद नहीं कब मां को फोन किया था.  यह कहते हुए काट दिया था कि बिज़ी हूं बाद में करता हूं. उसे फोन करना नहीं आता. बस एक बटन पता है जिसे दबा कर वो फोन रिसीव कर लेती है. पैसे चाहिए थे. पैसे थे, बैंक में जमा करने की फुर्सत नहीं थी.भूल गया था.           दसेक साल पहले ही हर पहली तारीख को पापा नियम से बैंक में पैसे डाल देते थे. शायद ही कभी फोन पर कहना पडा हो मां पैसे नहीं आए.


शादी हो गई है. बच्चे हो गए हैं. नई गाड़ी और नया फ्लैट लेने की चिंता है. बॉस को खुश करना है. दोस्तों को पार्टी देनी है. बीवी को छुट्टियों पर लेकर जाना है.          मां बाप बद्रीनाथ जाने के लिए कई बार कह चुके हैं लेकिन फुर्सत कहां है.  बहाना है. समय है लेकिन कौन मां के साथ सर खपाए बोर कर देत है नसीहत दे देकर.


पापा इतने सवाल करते हैं कि पूछो मत. कौन इतने जवाब दे. शाम को एक गिलास लगाना मुहाल हो जाता है. अपने घर में ही छुपते रहो पीने के लिए.             भूल गया पापा अपनी सिगरेट हम लोगों से छुपा कर घर से बाहर ही पीकर आते थे.


 न जाने हमने कितने सवाल पूछे होंगे मां-बाप से लेकिन शायद ही कभी डांट भरा जवाब मिला हो. 
लेकिन हमारे पास उन्हें देने के लिए कुछ नहीं है. हमारे बटुओं में सिर्फ़ झूठ है. गुस्सा है.. अपना बनावटी चिड़चिडापन है. उनकी गांठों में आज भी सुख है दुःख है और हम खोलने जाएं तो हमारे लिए आशीर्वाद के अलावा और कुछ नहीं.


8 May 2011 मदर्स डे है....साल में एक बार मदर्स डे के नाम पर ही एक बार मां के आंचल की गांठें खोलने की ज़रुरत सभी को होनी चाहिए.

1 comment:

  1. Gud 1 behad emotional....itne nalayak bachche hote hai kya?

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