Thursday, August 9, 2012

बदला !

युगों से चलता आ रहा है जोश दिला कर भावी पीढ़ी का खून गरम रखना, सो की वो गुज़रे बुजुर्गो का बदला ले सके | कभी गाड़ी नाव पे तो कभी नाव गाड़ी पे की तेर्ज़ पर यह भी दो लोगो ,परिवारों,देशो ,यहाँ तक की भाइयो के बीच युगों युगों तक चलता है | वैसे बदले की भावना को आज  के युग में भले ही नकारने की प्रवर्ती है परन्तु कही न कही वो दबी  हुई चिंगारी  हवा मांग रही  होती है  | अक्सर फ़कत दो जून रोटी की जद्दोजद्हत में इंसान उस भाव को तवज्जो नहीं देता, तो कही परिवार का मोह उसे उनसे दूर नहीं होने देता और बीवी बच्चो का प्यार बाप दादों के बदले पे भारी पड़  जाता है |
आज के नवीन युग की छोडिये पुरातन इतिहास उठाइए गीता का ज्ञान अर्जित करने वाले  प्रथम प्राणी अर्जुन भी अपने पुत्र  अभिमन्यु के वीरगति को प्राप्त होने पर यह प्रतिज्ञा करता  है  की "यदि जयद्रथ कौरव का आश्रय छोड़कर भाग नहीं गया और भगवान श्रीकृष्ण या महाराज युधिष्ठिर की शरण में नहीं आ गया तो कल उसे जरूर मार डालूंगा और अपने पुत्र की मृत्यु का बदला लूगा" |सम्पूर्ण महाभारत ही बदला था एक रानी के केश खुले रखने से मजबूर धर्मराज का बदला |

बदला लेने की भावना से आज क्रिकेट खेला जाता है पडोसी मुल्क के साथ, करोडो भारतीय सब काम छोड़ कर टीवी से चिपक कर दिन गुज़रते है और दिन के अंत में जो सुकून या दर्द का एहसास होता है वो अतुलनीय है |एक अध्ययन के अनुसार आपका माहोल भी आपके बदले की भावना को उकसाने या घटने में काफी हद तक सहायक माना गया है |कहा यह भी जाता है की बदला लेने वाला जितना सामर्थ्यवान होता है बदला भी उतना ही विनाशकारी  होता है |



बदले की भावना से बचना है तो क्षमा की शरण में जाए क्रोध पर सयम और परोपकार और सब के भले की भावना का अनुसरण करे |


No comments:

Post a Comment