Saturday, August 6, 2011

"दर्द सहेजो ,प्रेम बाटों"

आज आप और हम जहा कही व् जब कभी हो इस वाक्य का चलन काफी ज्यादा होने लगा है की "आजकल धरती पर पाप बहुत बढ़ गया है इसलिये यह हो रहा है वो हो रहा है | कभी किसी ने यह सोचने की जरुरत महसूस की है की यह क्यों और कैसे हो रहा है ?

"भय बिनु होए ना प्रीती गुसाई " तुलसी की इस चोपाई को लोगो ने सार्थक करने में कोई कसार नहीं छोड़ी | आज इंसान झूठ ,फरेब और मक्कारी का उपयोग करते हुए प्रभु भय के बारे मे ना सोच कर समाज उसका कुछ बिगाड़ पायेगा या नहीं ?क्या कोई काम रुक तो नहीं जायेगा ऐसा करने से ,कई जगहों पर दंड दे कर बच सकता हू या नहीं ? इस तरह की प्रवृति आम होचुकी है |

"फिर हम सही सहयात्री होंगेएक कांधा तुम होगेएक मैं ..... दर्द को हम बाँट लेंगे" !  इस कथन का आज भरपूर उपयोग हो रहा है, मेरी तरह हरकोई दर्द बाटने मे लगा हुआ है प्रेम, सद्भावना, मानवता आज जिंदिगी से कोसो दूर छूट गए सच कहा है, अगर मनुष्य अपना चेहरा ही गौर से देखे आंशिक प्रकाश में तो रुप कितना विकृत दिखाई देता है। इसलिए जीवन में प्रकाश का होना निहायत ही जरुरी है। जीवन में प्रकाश तभी रहेगा जब कथनी और करनी में अंतर नहीं होगा। तभी तन-मन-जीवन आलोकित होगा।

प्रकृति प्रदत्त उपहार समस्त जगत के लिये है बस आवश्यकता है उसे सहेजने की उसका आनंद लेने की।होड़ छोड़ कर सेवा सुश्रुता,कामना परे रख कर कर्म ,मोह का त्याग कर दान एव दर्द को सहेज कर उलहास बिखेरने से तृप्ति का वो सुखद अहसास स्वयं ही जीवन पर्यंत रहेगा और तभी मनुष्य जीवन सही मायने मे सार्थक होगा|

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