Monday, March 19, 2012

कहाँ गए वो गधे ..

याद है बचपन में ताँगे बग्घी में घोड़े की आखो के आगे चमड़े का पर्दा लगता था ताकि वो सीधा देखे और सीधा चले । जब से अखिलेश यादव जीते हैं तब से चारों तरफ उनका ऐसा गुणगान हो रहा है कि बाप रे बाप। वो इतने कमाल के हैं वो उतने कमाल के हैं, वो इतने किलोमीटर चले वो उतने किलोमीटर दौड़े उन्होंने इतने किलोमीटर साईकल चलाई। अरे भैया यह भी तो बताओ कि वो कितने हज़ार का जूता पहन कर दौड़े, उनकी फायरफॉक्स कंपनी की बनी बहुत कीमती विदेशी सायकल कितने की है, वो कितने लाख रूपये के फ़ोन रखते हैं।


भाई अखिलेश यादव पर , उनकी पत्नी डिम्पल पर और उनके सौतेले भाई प्रतीक पर सीबीआई के आय से अधिक संपत्ति के मुकदमों कि क्या कैसे क्यों गत हुई। कोई तो याद करो, याद करो कि उन पर आरोप लगाने वाले की क्या दशा हुई । 


मीडिया को क्या हो गया ? मीडिया और नेता के बीच तो सांप नेवले का रिश्ता होना चाहिए, खंबे और कुत्ते का रिश्ता होना चाहिए पर यहाँ तो गाय बछड़े का रिश्ता हो गया है खूब प्यार से चाट रहे हैं एक दूसरे को देख कर आखें भर आईं ।रावण के विभीषण पैदा नहीं होता मेघनाथ ही होगा ,कृष्ण कंस का पुत्र नहीं हो सकता ,आखे खोलो और सावधान करो लोगो को !



घोड़े सुंदर जरूर होते है पर काम गधे ही सही करते है , सबके आँखों के अगल बगल परदे लगे हैं सब केवल सीधे देखते हैं  कहाँ गए वो गधे जो चारों तरफ देखें, कहीं भी चल दें, वक़्त बे-वक़्त दुलत्ती झाड़ें क्यों सभी वाह वाही कर जगह बनाना चाहते है ? 

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