Tuesday, March 20, 2012

बेबाक बात

सुना था, बाते करना और बेबाक बाते करना अलग अलग फलसफा है ।मगर लगता है ये सटीक आंकलन नहीं है
मेरे ख़याल में, इंसान यदि बोले, दिल ख़ोल के बोले तो शुरू में  जाहिर है गलतिया करेगा । मगर जनाब अपनी राय, अपनी बात, अपनी सोच दूसरे तक तो पंहुचा सकेगा और हाँ, धीरे धीरे परिपक्व हो जायेगा ।वैसे बेबाकी और उद्दंडता में धागे भर का ही फर्क होता है धागे के इंगे बेबाकी बिंगे उद्दंडता !!!


ढीट होना आज वक़्त की जरुरत बन गई लगता है अन्यथा लोग आपका अस्तत्व नकारने में समय नहीं लगायेगे ।कई लोग इसी हुनर से कमा खा रहे है ।बेबाक बात करने के नतीजे हमेशा बुरे ही होगे यही पुरानी विचारधारा थी क्युकी उस वक़्त राजाओ ,सामंतो का जमाना था परन्तु आज देश आजाद है वर्ण व्यवस्था बदल रही है आज कोई किसी का दास नहीं । पर फिर भी दूरांत गाव देहात में ये बेबाकी प्राण हनन का कारण तक बन जाती है ।


इसी भंवरजाल की वजह से संसार में दुराचारी हनानकारी लोगो की तादाद में वृद्धी की सुचना अब तब मिलती है ।बहर हाल होता आज भी बुरे का अंत ही है मगर आज इंसान अंत की नहीं वर्तमान हतु जीना सीख चूका है इसलिए भगवान् का खौफ भी नहीं रहा ।समाज को चाहिए की माता पिता संस्कार अनुशासन सच्चाई आदर्शो के लिए जीने की सीख दे सद्भावना मेह्नत का मोल सिखाये न की पैसे और आराम के पीछे भागना ।



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